________________
अन्वय-श्रुतौ श्रुतिसेवा धा धनिष्ठायां जलक्रीड़ादि परद्रये शिवं इच्छेत् ॥२०॥
अर्थ-शास्त्र श्रवण में श्रवण नक्षत्र, महत् धन की प्राप्ति में धनिष्ठा, जल क्रीड़ा में शतभिषा (वारूणीदेव), शुभ की कामना में पूर्वाभाद्रपद व उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र होते है।
अन्यायवारणे भूयः प्रतापोदयकारणे राजधर्मात् प्रजापोषे रेवत्यां मानसी रूचिः ॥ २१ ॥
अन्वय-रेवत्यां अन्यायवारणे भूयः प्रतापोदयकारणे राजधर्मात् प्रजापोषे मानसी रूचिः ॥ २१ ॥ - अर्थ-अन्याय को रोकने में, प्रताप के उदय के कारण में, राजधर्म से प्रजा के पोषण की भावना में रेवती नक्षत्र होता है। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि मनुष्य शरीररूपी पिण्डाण्ड विशाल ब्रह्माण्ड की ही अनुवृति है तथा विश्व का संचालन करने वाली जितनी भी शक्तियाँ हैं वे सभी अंगरूप से मनुष्य शरीर में विद्यमान हैं।
॥ इति श्रीअर्हद्गीतायां त्रयोदशोऽध्यायः ॥
१३०
अहंद्गीता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org