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जाड्ये प्रदीपने वढेः परिधाने च भोजने । हेमन्तः शिशिरः क्रीडा व्रीडा पीडारतादिषु ॥९॥
अन्वय-जाड्ये वह्नः प्रदीपने परिधाने भोजने च हेमन्तः क्रीडा व्रीडा पीडारतादिषु शिशिरः॥९॥
अर्थ-शीतलता में, जठरामि के प्रदीप्त होने पर हेमन्त ऋतु मानी जाती है। कौतुक लज्जा, पीड़ा और रति अवस्था में शिशिर ऋतु की कल्पना की जाती है।
सूर्योदयादहोरात्रे मानेन नाडिकाः । वसन्ताद्या हि तवः प्रोक्ता मंत्रागमे ततः ॥१०॥
अन्वय-सूर्योदयात् अहोरात्रे मानेन दश नाडिकाः (भवन्ति) (तेन) वसन्ताद्या हि ऋतवः प्रोक्ता ततः मंत्रागमे ॥१०॥ ___ अर्थ-सूर्योदय से ही दिन रात बनते हैं और इसी मान से दशनाड़ियों के रूप में काल गणना की गई है और वसन्त आदि ऋतुएं भी संवत्सर की कालगणना के प्रकार हैं और मनसे भी मनुष्य के कालानुसारी स्वभाव का परिगणन किया जाता है ऐसा मंत्र शास्त्र में कहा गया है। “दिनं दिनेशस्य यतोत्र दर्शने तमी तमो हन्तुरदर्शने सती"
- सिद्धान्त शिरोमणि अर्थात् सूर्य का दर्शन ही दिन और अपदर्शन ही रात्रि है। वासु लवणममृतं शरदि जलं गोपयश्च हेमन्ते। शिशिरे चामलकरसं घृतं वसन्ते गुड़श्चान्ते ॥ ११ ॥
अन्वय-वर्षासु लवणं अमृतं शरदि जलं गोपयः च हेमन्ते। शिशिरे च आमलकरसं वसन्ते घृतं अन्ते च गुडः॥११॥
.. अर्थ-वर्षा ऋतु में लवण, शरद ऋतु में जल एवं हेमन्त में गाय का दूध, शिशिर ऋतु में आँवले का रस, वसन्त में घी एवं अन्तिम ग्रीष्म
भईद्गीता
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