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________________ अर्थ-संग्रह द्रव्यास्तिक नय वस्तुके सामान्य स्वरूप को कहता है और ऋजुसूत्र वस्तु के विशेष रूप को कहनेवाला है। ये दोनों नय नैगम नय से अलग हैं जो अनेक दृष्टिसे भेद करते हुए देखता है। व्यवहार नय लोकोक्ति से चलता है । मृत्सुवर्णायसां कुंभा एक एवाम्बुधारणे । परिमाणाकृतिस्थान-मूल्यैः सर्वे पृथक् पृथक् ॥ ६ ॥ अन्वय-मृत् सुवर्णायसां कुंभा एक एव अम्बुधारणे (प्रयुक्ताः) सर्वे परिमाणाकृतिस्थान मूल्यैः पृथक् पृथक् ॥ ६॥ अर्थ-जल को धारण करने वाले मिट्टी सोने व लोहे के घड़े सामान्य संगह नय से तो एक ही हैं पर वे सभी विशेष की अपेक्षा से परिमाण, आकार, स्थान एवं मूल्य की अपेक्षा से अलग अलग हैं। विवेचन-तत्त्वचिंतन के मुख्य तीन प्रकार हैं। एक है एकीकरण का और दूसरा है पृथक्करण का। एकीकरण में पदार्थों के विशिष्ट रूपो में छिपी हुई समानता का, घटत्व का दर्शन होता है। पृथक्करण में घटत्व के विशेषों को अनेक प्रकार से अलग कर के देखा जाता है जैसा कि छोटा घड़ा, बडा घड़ा, (परिमाण), सूराही जैसा घड़ा (आकार ), या तो मेज पर रखा हुआ घड़ा (स्थान), सोने का घड़ा, मिट्टि का घड़ा (मूल्य) इत्यादि । इन दोनो से भिन्न नैगम नय में लोक मान्यताएँ पायी जाती हैं जहाँ एकीकरण और पृथक्करण दोनों के प्रयोग पाये जाते हैं। अपक्व न जलाहारः पक्वेऽसौ तौ ततः पृथक् । कुंभत्वं काणकुम्भेऽपि व्यवहारेण मन्यते ॥ ७॥ अन्वय-अपक्वे जलाहारः न, पक्वे असौ (भवति) ततः (नैगमात्) तौ पृथक् । व्यवहारेण (तु) काणकुम्भेऽपि कुम्भत्वं मन्यते ॥७॥ .. अर्थ-कच्चे घड़े से जलाहरण का काम नहीं होता पर (सामान्य की अपेक्षा से) संग्रह नय से वह भी घड़ा है। उस घड़े से पकने पर अहंद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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