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अन्वय - कुदेवे कुत्सिता भक्तिः कुगुरोः कुज्ञानं भवेत् कुलिंगात् धर्म कुत्सा एव श्री धनपालवत् ज्ञेया ॥ २० ॥
अर्थ - कुदेवों की भक्ति कुत्सित भक्ति होती है तथा कुगुरुओं से होने वाला ज्ञान कुज्ञान होता है । अशुभ लक्षणों से श्री धनपालसेठ की तरह धर्म के प्रति घृणा ही होगी । अतः धर्म सुदेव सुगुरु एवं शुभ लक्षणो से युक्त होना चाहिए ।
उज्ज्वलात्पक्षतः कृष्णपक्षेऽन्ये यान्ति धार्मिकाः । आर्हताः कृष्णतः शुक्ले विशन्ति सुधियः न किं ॥ २१ ॥ अन्वय-अन्ये धार्मिकाः उज्ज्वलात् पक्षतः कृष्णे पक्षे यान्ति । आर्हताः : कृष्णतः शुक्ले ( अतः ) सुधियः किं न विशन्ति ॥ २१ ॥
अर्थ - अन्य धर्मावलम्बी जहाँ धर्म के उज्ज्वल पक्ष से तमसू पक्ष की ओर जाते हैं वहीं जैन धर्मावलम्बी अन्धकार से प्रकाश की ओर बढते हैं अतः विद्वान् बुद्धिमान् क्यों नहीं इस धर्म का आचरण करेंगे अर्थात् अवश्य करेंगे ।
अष्टमोऽध्याया
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॥ इति अष्टमोऽध्यायः ॥
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