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मनुष्य की खोपड़ी धारण करने वाले कापालिक हैं उस धर्म में तो केवल बातों में ही मंगल है।
देवो मायासुतस्तस्य मायाराध्यैव बुध्यते । मायाराधनतो ब्रह्ममयो धर्मः श्रुतौ मतः ॥ १४ ॥
अन्वय-तस्य देवः मायासुतः माया एव आराध्या बुध्यते । मायाराधनतः ब्रह्ममय धर्मः श्रुतौ मतः ॥ १४ ॥
अर्थ-उस धर्म के देवता माया जन्य हैं एवं वहाँ माया की ही आराधना की जाती है। माया की आराधना से होने वाला ब्रह्ममय धर्म श्रुति में ही बताया गया है।
देवः श्रीनाभिभूः पूर्वो वर्धमानस्तथान्तिमः । अन्योऽप्यजित शान्त्याधस्तत्र धर्मे शिवं दृढम् ॥ १५ ॥
अन्वय-(यस्मिन् धर्मे ) पूर्वः देवः श्री नाभिभूः तथा अन्तिम वर्धमानः अन्यः अपि अजित शान्त्याद्यः तत्र धर्मे शिवं दृढम् ॥१६॥ ... अर्थ-जिस धर्म में प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव व अन्तिम श्री वर्धमान जिनेश्वर हैं अन्य तीर्थङ्कर श्री अजितनाथ, शान्तिनाथ आदि हैं उस धर्म से निश्चय ही मंगल होगा।
क्षमाप्रधाना गुरवः सर्वाङ्गज्ञानभाजनम् । दक्षाः षडङ्गिरक्षायां शिक्षायां सुगुरोस्तथा ॥१६॥
अन्वय-क्षमाप्रधानाः गुरवः सर्वाङ्गज्ञानभाजनम् षडङ्गिरक्षायां शिक्षायां दक्षाः सुगुरोस्तथा ॥ १६॥
अर्थ-जिस धर्म के गुरु क्षमा प्रधान हैं सभी आगमों का जिन्हें ज्ञान है। छ जीवनिकाय का रक्षण-पालन एवं शिक्षण में (जो दक्ष हैं) वे वास्तव में सुगुरु हैं।
अष्टमोऽध्यायः
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