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________________ अग्रवचन ऋषिमण्डलना त्रण विभाग पैकी द्वितीय विभागनुं अहीं प्राधान्य छे अने ते तेना शीर्षक परथी पण समजाय छे। प्राचीन स्तवनी परंपरा घणी जूनी होवा छतां तेमां अनेकवाक्यता प्रवर्तती हशे अने परिणामे यन्त्रन आलेखन करवामां विषमता ऊभी थवानो संभव हशे। अर्वाचीन परिस्थिति पण एवी ज छे; कारण के अनेक प्रकारनां ऋषिमण्डलयन्त्रो प्राप्त थाय छ। आ संजोगोमां आ कृति साची रीते मार्गदर्शक बनी शके एम छे; कारण के सर्वत्र प्रवर्ती रहेली तत्कालीन अतन्त्रतामांथी साचो मार्ग दर्शाववानी भावनापूर्वक आ रचना करवामां आवी जणाय छे। मात्र छत्रीश श्लोकोमा अति प्रभावसम्पन्न एवा आ ऋषिमण्डलयन्त्रनुं खूब अद्भुत रीते आलेखन करवामां आव्यु छे। यन्त्रालेखननी आवी कडीबद्ध अने सुव्यवस्थित माहिती आपणने अहीं सिवाय बीजे क्याय मळती नथी अने तेथी आ कृतिनुं प्रकाशन ' 'ऋषिमण्डल'नी तवारीखमां महत्त्वन सीमाचिह्न बनी रहे छ। उपसंहार ___ 'ऋषिमण्डलयन्त्र'- सारभूत वस्तुनिदर्शन सुश्रावक शेठ श्री. अमृतलालभाईए विगतथी कर्यु छे एटले तेनो वधारे विस्तार अहीं कयों नथी; परंतु आ महाप्रभावक यन्त्रनी आराधना करता पहेलां एक वात खास लक्ष्यमां राखवी जोईए के तेनो कोईपण प्रकारे दुरुपयोग न थाय । शुद्धबुद्धिपूर्वकर्नु पूजन ज यथार्थ फळदायी बनशे अने ते ज परमसिद्धिनी प्राप्ति करावी शकशे। आ यन्त्र गमे एने आपी शकाय नहीं अने ते बाबत पर खास भार मूकतां आचार्य श्रीसिंह तिलकसूरिए स्पष्ट जणाव्युं छे के "सम्यग्दृष्टि, विनीत अने ब्रह्मचर्यव्रत धारण करनारने ज आ यन्त्र आपq । मिथ्यादृष्टिने न ज आपकुं। तेने एटले के मिथ्यादृष्टिने आपवाथी श्रीजिनेश्वरभगवंतनी आज्ञाना भंगरूप दूषण लागे छ ।” ढूंकमां, ए अभिलाषा के आ यन्त्र अध्ययन, पूजन अने अर्चन सदुपयोग माटे थाय अने ए रीते तेनो योग्य आराधक विशिष्ट परिणामो प्राप्त करे। लि. पं. श्री. धुरन्धरविजयजीगणी श्री अमृतसूरीश्वरजी ज्ञानमंदिर दोलतनगर, बोरीवली (पूर्व), मुंबई-६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001509
Book TitleRushimandalsavyantralekhanam
Original Sutra AuthorSinhtilaksuri
AuthorTattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size4 MB
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