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________________ श्रीऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखननु सारांश दर्शन ऋषिमण्डलस्तबयन्त्रालेखन-आ स्तवना नाम उपरथी एवं सूचन मळे छ के ते केवळ यन्त्रालेखननी प्रक्रिया दर्शाववा पूरतुं स्तवकारे रच्युं होय; परंतु तेमां आलेखननी प्रक्रिया उपरांत यन्त्रविज्ञान विषे स्तवकारे यन्त्रना भेदो तथा तेना अवांतर भेदो गर्भित रीते दर्शाच्या छे, जेनो सारांश आपवानो अहीं प्रयास करवामां आवे छे। १. मंगलादि-श्लोक नं. १: मन्त्रयोगनी प्रणालिका अनुसार अनंतर गुरु तथा परंपर गुरुने प्रणाम करी स्तवनी शरूआत करवामां आवे छे। आ प्रकारे आत्यन्तिक स्थानना बन्ने गुरुओने प्रणाम करवाथी समग्र गुरुपरंपराने प्रणाम थाय छे। अहीं अनंतर गुरु ते श्रीविबुधचन्द्रसूरि अने परंपर गुरु ते चरम तीर्थंकर श्रीमहावीर प्रभु। आथी स्तवनी शरूआत महामंगलकारी थाय छे। २. यन्त्रस्वरूप आलेखन प्रक्रिया-श्लोक नं. २ थी नं. १२: आ अगियार श्लोकोमा अनेक अवांतर भेदो छे; तेथी तेने अहीं नीचे प्रमाणे व्यवस्थित रीते रजू करवामां आवे छे: (१) यन्त्रदेह माटे द्रव्य तथा साधन-सामग्री-श्लोक नं. २ (अ) भर्चना-पूजा माटे यन्त्रपटनु द्रव्य:-सोना, रूपा अथवा कांसाना पत। उपर यन्त्रनी स्थापना करवी। अथवा त्रणे धातुनी (आम्नाय प्रमाणे) मेळवणी करावीने तेना पतरा उपर यन्त्रनी स्थापना करवी। (ब) रक्षा माटे यन्त्रपट- द्रव्य :-भोजपत्र उपर यन्त्रनी स्थापना करवी। (क) लेखन माटे साधन-सामग्री :-अष्टांगगंध तथा सुवर्णलेखिनी । उत्तम द्रव्य तथा साधन-सामग्रीनो ज अहीं निर्देश करवामां आव्यो छे । अहीं एक आम्नाय स्पष्ट मळे छे के यन्त्रनो उपयोग पूजा माटे तथा रक्षा माटे छे। यन्त्रनी स्थापना करवानो अहीं निर्देश छे; परंतु ते प्रचलित विधि प्रमाणे करवानी हशे तेथी तेनो कई आम्नाय दर्शावायो नथी। (२) यन्त्रालेखन-बहिर्वलय निर्माण-श्लोक नं. ३ बहिर्वलयनु निर्माण प्रथम करवाथी यन्त्रदेहना मध्यबिन्दुनो तथा तेनी सीमानी मर्यादानो निर्णय थाय छे; अने ते वलय जलमण्डलनु होवाथी यन्त्रनो उपयोग शांति, तुष्टि अने पुष्टि माटे थई शके छे। जलमण्डलना वर्णनो पण अहीं निर्णय थयो छे । ते श्यामल अथवा नीलवर्णनुं छे । आगळ उपर पिण्डस्थ ध्यान करवानुं छे तेथी तेने अनुकूळ थाय तेवी रीते लवणसमुद्रनी यन्त्रव्यवस्था छ । (३) यन्त्रालेखन-मध्यवलय निर्माण-श्लोक नं. ४ यन्त्रना मध्यभागमां जंबूद्वीप अने तेनी आठ दिशाओमां अर्हसिद्धादि अभिधापंचक तथा ज्ञान, दर्शन अने चारित्रनो निर्देश छे । मध्यभाग पण पिण्डस्थ ध्यानने अनुकूळ करवामां आव्यो छे । शान, दर्शन अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001509
Book TitleRushimandalsavyantralekhanam
Original Sutra AuthorSinhtilaksuri
AuthorTattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size4 MB
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