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"सम्यक्त्व"
सम्यक्त्व : देहातीत महापुरुष अर्थात जो आत्माये देह रहित होकर मोक्ष में चली गई है अथवा जिसने देहातीत होने की पूर्ण तैयारी करली है एवं देहातित होने की जो तन तोड़ मेहनत कर रहे है जैसे : (अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधु) इनको पूज्य मानना इनके प्ररूपित सिद्धांत को सही मानना आत्मसात करना “सम्यक्त्व" है। ___ सम्यक्त्व मोहनीय : अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधु इन पंच परमेष्टिओं के प्रभाव से पौद्गलिक सुख की प्राप्ति मानना एवं पौद्गलिक सुख की इच्छा से पूज्य मानना इसी हेतु धार्मिक क्रिया करना समकित मोहनीय है। (अतः त्याज्य है)
मिथ्यात्व :- देहासक्त आत्माओं को अर्थात जिनका लक्ष्य पौद्गलिक सुख की प्राप्ति करना होता है उनको धार्मिक बुद्धि से पूज्य मानना, देवरूप से या गुरू रूप से "मिथ्यात्व है आत्मा की दुर्गणा है (अतः गुणस्थान में मानना उचित नहीं लगता ।)
मिथ्यात्व मोहनीय :- उपरोक्त देहासक्त आत्माओं को पौद्गलिक सुख में सुखकी पूर्ती में इनका प्रभाव मानना इस हेतु इनके मान्य धार्मिक अनुष्ठान क्रिया करना “मिथ्यात्व मोहनीय है। मिश्र :- देहातीत, एवं देहासक्त दोनों को पूज्य मानना । समान मानना
आदि
मिश्र मोहनीय :- पौद्गलिक सुख की प्राप्ति में दोनों का प्रभाव मानना इस हेतू दोनों प्रकार की क्रियायें करना जैसे : अष्ठमी, पक्कखी का . एकासणा उपवास करना एवं संतोषी माता का भी व्रत करना । अर्थात थोड़ा सम्यक्त्व थोड़ा मिथ्याच्व इसको मिश्र गुणस्थान भी कहते है। अरहंतो महदेवो जाव जीवं सुसाहुणो गुरूणो जिणापन्नतं धम्म इह सम्मतं महे गहियं
44) क्या यह सत्य है ?
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