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________________ 10. शोक : ग्रहस्थ के घर में या अन्य के घर में मृत्यु हो जाने से शोक के कारण अमूक दिन तक पूजा नहीं करना ऐसा नियम ही नहीं रखा गया कि मृत्युक्रिया में जाने वाले को अमूकर दिन पूजा नहीं करना । 11. दुगंछा : ग्रहस्थ के घर स्त्री की प्रसुति हो जाने से घर में अन्य व्यक्तियों को दुगंछा याने अशुद्धि के कारण पूजा दर्शन के लिये अमूक दिन तक नहीं करना ऐसा भी कोई नियम नहीं रखा गया है। 12. सकाम : अरहंत भगवंत निष्कामी हैं अतः इन की कोई भी पूजाविधी में ऐसा नियम नहीं रखा गया हैं कि सौभाग्यवती स्त्री ही हो या कुमारिका ही हो यहां सधवा या विधवा का पूजा भक्ति में कोई पक्षपात नहीं रखा जाता है। 13. मिथ्यात्व : प्रतिष्ठा प्रसंग पर या विशेष पूजा विधी में नवग्रह दस दिग्पाल आदि कीसी अन्य देवी देवता की पूजा करने की कोई क्रिया करना निषेध रखा गया है। 14-15. अज्ञान-निद्रा : अरहंत भगवंत के दर्शनावरणीय का क्षय हो जाने से निद्रा आ सकती नहीं और केवलज्ञान हो जाने के कारण भूल जाने का कारण नहीं अतः यहां पर किसने प्रतिमा भराई किसने मंदिर बनाया ऐसा किसी तरह का लेख न प्रतिमा पर लगाया जाता है न मंदिर में कहीं पर। 16. अविरति : अरहंत भगवंत विरतिवंत है इसलिये इनकी प्रतिमा में भी अविरति जैसा द्रश्य जैसे कि विविध प्रकार की अंग रचना (आंगी) आभूषण आदि का दिखावा नहीं किया जाता, मात्र देवदुष्य वस्त्र ही दिखाया जा सकता हैं राज्य अवस्था का नहीं । ___17-18. राग-द्वेष : अरहंत भगवंत वीतराग है रागद्वेष रहित है अतः इस मंदिर में प्रतिमाजी भराते वक्त या विराजमान करते वक्त यह नहीं देखा जाता कि अमूक भगवान से हमारा लेणीया हैं अन्य से लेणीया नहीं ऐसा कभी सोचा नहीं जाता, किया नहीं जाता, क्योंकि किसी भी तीर्थंकर को न किसी से राग है न द्वेष है, तो यह देखने की जरूरत ही क्यों ? विशेषकर चरम तीर्थपति श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा ही विराजमान 40) क्या यह सत्य है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001506
Book TitleKya yah Satya hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHajarimal Bhoormal Jain
PublisherShuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati
Publication Year1994
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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