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________________ -: देव द्रव्य : पू. आचार्य श्री रामचन्द्र सूरीश्वरजी को लिखे गये मूलपत्र की प्रतिलिपी यहां प्रकाशित की जा रही है । वंदना के साथ मालूम हो कि अहमदाबाद में अभी अभी श्रमण सम्मेलन में जो-जो निर्णय लिये है उसके बारे में आपके द्वारा या आपके अनुयायीयों द्वारा दैनिक समाचार पत्रों में काफी विरोध हो रहा है जिसमें विशेष कर देव द्रव्य संबंधी ऐसा कुछ समाचार पत्रों से मालूम होता है । मेरा आपसे अनुरोध है कि आप को इस विषय की गहराई में जाना चाहिये और इसका विरोध करना है तो मात्र जैन समाचार पत्रों में, ताकि अजैनों में फूट का प्रदर्शन न हो । 1) जहां तक मेरा अनुभव है देव द्रव्य संबंधी जो वर्तमान कालीन मान्यता है वह सब चैत्यवासियों द्वारा अपनाई गई प्रवृति है जैन दर्शन के मौलिक सिद्धांत से सर्वथा विपरित है । 2) देव द्रव्य :- जैनियों के मान्य पंच परमेष्टि में सर्वोत्तम प्रथम परमेष्टि “अरहंत” प्रभू लोकोत्तर देव है ऐसा प्रथम मानना होगा और ऐसा मानने से इनका जो भी द्रव्य होगा वह भी लोकोत्तर होगा इतनी बात अनुभव में आ जाय तो वर्तमान कालीन मान्यता, मतभेद अपने आप समाप्त हो जायगा । 3) जिन महान विभूतियों ने (अरहंत प्रभू) जिस द्रव्य को हेय मानकर छोड़ दिया उसी द्रव्य को याने आर्थिक धन रूपी द्रव्य को उन्हीं के नाम से करना और उसके उपयोग के बारे में क्लेश का वातावरण करना क्या उचित है ? 4) जैन दर्शन के प्ररूपक अरहंत देव का द्रव्य ज्ञान, दर्शन, चारित्र है जो अक्षय अखंड, अव्याबाद है और इसी कारण से उनके अनुयायी साधु वर्ग का भी पंच परमेष्टि में स्थान होने से उनका द्रव्य भी वही हो सकता है भले ही वह आंशिक हो यहीं गुरु द्रव्य कहलाने योग्य है । Jain Education International क्या यह सत्य है ? (33 www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001506
Book TitleKya yah Satya hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHajarimal Bhoormal Jain
PublisherShuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati
Publication Year1994
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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