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________________ मांगणी" जयवीराय सूत्र में मांगणी की ही बहुलता है अतः हमें यह विचार करना है कि वीतराग देव के पास हमारे जरुरीयात की मांगणी की जाय ? क्या मांगणी करना उचित है ? और क्या मांगने से दे देते है? या मांगे बिना देते नहीं ? इसके लिये ग्रहस्थ जीवन का एक उदाहरण पेश करता एक सेठ है और एक सेवक है सेठ के पास सेवक काम करता है। सेवक को यह मालूम हो जाय कि सेठ ईमानदार है योग्य है, उदार है, कंजुस नहीं है, बेइमान नहीं है, अयोग्य नहीं है, इतनी बात जानने के बाद अगर सेवक समझदार है मेहनतकश है, ईमानदार है, वफादार है तो सेठ से मांगेगा क्या ? वह यह कहेगा क्या ? कि मुझे इतना दो, यह दो, वह दो, मैंने यह किया है वह किया है यह प्रत्यक्ष प्रमाण है कि ऐसी स्थिति में कोई नहीं मांगता, मांगना वहीं होता है जिसे या तो सेवक को सेठ की इमानदारी पर शंका हो या कम काम करके ज्यादा दाम लेना हो । इस अनुभव के उदाहरण से क्या प्रेरणा ले सकते है ? जैन दर्शन का अटल सिद्धांत है कि जितना करेंगे उतना मिले बिना रहेगा नहीं, मोक्ष भी मांगने से मिल सकता नहीं जबकि मोक्ष के. प्ररूपक अरहंत प्रभु की आज्ञानुसार कार्य करने से ही मिल सकता है। इससे स्पष्ट है कि अरहंत भगवंत हमारे स्वामी है और हम उनके सच्चे सेवक है अतः हमे निष्काम भक्ति करना हमारा परम कर्तव्य है। बाल जीव अज्ञानतावश कोई भी लौकिक मांगणी करें या इस उद्देश्य से क्रिया करे तो यह अपवाद है उसे समझने का प्रयत्न किया जाय उसके बदले में स्वयं भी वही क्रिया करें तब बाल जीवन कहाँ तक ? अज्ञानता कहां तक ? इस अपवाद को ही मुख्य मान लिया जाय और ऐसे ही सूत्रों का नित्य पाठ किया जाय तब अपवाद कहां रहा ? इसके लिये हमें हमारी अज्ञानता को देखना होगा । जैन दर्शन के तीर्थ तीर्थपति तीर्थंकर प्रभू महान है सर्वज्ञ है ऐसे अरहंत प्रभू की महानता योग्यता, सर्वोपरिता को समझना होगा और यह समझ में आ जाय तो मांगने की जरुरत ही नहीं रहेगी मात्र आज्ञानुरुप कार्य करने का ही लक्ष्य रहेगा । क्या यह सत्य है ? (17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001506
Book TitleKya yah Satya hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHajarimal Bhoormal Jain
PublisherShuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati
Publication Year1994
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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