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गई है उसमें द्रव्य निक्षेपा की आवश्यक क्रिया जैसी व्याख्या करते हुए और एक उदाहरण दिया गया है कि :
घी का घड़ा या मधु का घड़ा अर्थात् जिस घड़े में घी या मधु भरा जाने वाला है या भरा गया था ( किन्तु अब खाली है) इस तरह के घडे जो कि वर्तमान में खाली है उसे घी का घड़ा जो कहते है वह द्रव्य निक्षेपा से घी का घड़ा है ऐसा कहा जाता है। उपरोक्त दोनों उदाहरणों में से प्रथम उदाहरण का उद्देश्य आवश्यक क्रिया को उपयोग सहित और उपयोग रहित करने के भेद को समझने का है ।
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दूसरा उदाहरण घी का घड़ा जो कहा जाता है जिसे द्रव्य निक्षेपा कहा गया है वह व्यवहारिकता को समझने के लिये है इस व्यवहारिकता को ही अगर हम यह समझ ले जैसा कि हमने चारों निक्षेपाओं का वंदनीय या निंदनीय समझ रखा है। तो अनुचित होता है जैसे कि :घी से भरे हुए घड़े का मूल्य रु. 500/- आता है तो घी का घड़ा भरा होने पर ही पांच सौ रुपये का मूल्य आयगा यदि वह घडा खाली है और घी से भरा जाने वाला है या भरा हुआ था। इससे घी के घडे का मूल्य पांच सौ रुपया नहीं आयगा अपितु खाली घड़े का मूल्य जो भी पांच या दस रुपये होगा वहीं आयेगा घी का घड़ा कहने मात्र से मूल्य नहीं आता । यह एक व्यवहारिक साधारण समझ की बात है फिर भी इन उदाहरणों के रहस्य को नहीं समझने के कारण द्रव्य निक्षेपा को जिनेश्वर भगवान के साथ लगाकर और जिसका भावनिक्षेपा वंदनीय है उसके चारों निक्षेपा वंदनीय है ऐसा मानकर भविष्य में होने वाले जिनेश्वर वंदनीय समझकर ऐसी गाथाये आवश्यक सूत्रों में याने नमोत्थुणं आदि में जोड़ दी है। वं चैत्यवंदन भाष्य आदि प्रकरण सूत्रों में ऐसी रचना कर दी है जो मूलभूत आगम सूत्रों के संबंध से रहित तो है ही व्यवहारिकता से भी विपरित है जिसके और भी प्रमाण उदाहरण निम्न दर्शाये गये है ।
1) कल्प सूत्र में शक्रस्तव अर्थात् नमुत्थुणं जो है उसमें "जे अइया सिद्धा" जेअ भविसंतिणगये काले" यह वाक्य ये शब्द ही नहीं है आचार्य देवर्द्धि गणी द्वारा आगम सूत्र लिपिबद्ध होने तक यह व्याख्या ऐसी रचना कृति नहीं थी इसका यह ठोस प्रमाण है । बाद में किसी आचार्य द्वारा ऐसी रचनाकर नमुत्थुणं जैसे सूत्रों में जोड़ दी है।
10) क्या यह सत्य है ?
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