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________________ प्रस्तावना (प्रथम संस्करण) वित्तीय ( भौतिकवादी) विचार-वैतरणीके बहावमें बहता हआ वर्तमान-युगका मानव, माया ममता मोहादिसे मोहित होकर सतत ही सांसारिक स्वार्थ-साधनाकी पूर्ति हेतु अपनी एडीसे चोटी तकका पसीना एक करता रहता है। वह अपनी शक्ति और सामर्थ्यको विस्मृत कर, शान्तिको तिलांजलि दे, चलते-फिरते, उठतेबैठते, जागते-सोते, आठों पहर विषय-वासनाओंकी विकट वह्नि में झुलसता हुआ संतप्त एवं दुःखी बना रहता है । ऐसी ही आधियों-व्याधियोंसे व्यथित होता हआ जन्म-मृत्युकी काँवरको कन्धोंपर रख यह नाना गतियों, योनियों एवं पर्यायोंमें ठोकरें खाता फिरता है। पाठकगण ! इसकी अज्ञतापर हंसिये या तरस न खाइये । यह हालत किसी एक मानव विशेषकी नहीं, दसकी नहीं, सैकड़ों, हजारों, लाखों और करोड़ोंकी नहीं अपितु हम आप समूची मानव जातिकी हो रही है। ___संसारी प्राणीकी बहिर्मुखी दृष्टि अन्तरोन्मुखी हो सके, वह स्व-पदमें अवस्थित हो सुपथका पथिक बन सके, इसके लिये आवश्यक है कि वह इष्ट ( हितकारी) उपदेशको सूने । उसे एक कानसे सूनकर दूसरे कानसे न निकालते हुए उसपर मनन करे और इस प्रकार ज्ञात हुए साँचेके ढाँचेमें जीवनको ढाल लेवे। इस ओर प्रवृत्ति या कदम बढ़ानेके पूर्व यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिये कि सभी उपदेश इष्ट तथा हितकारी नहीं होते हैं । इष्ट उपदेशके उपदेष्टामें पूज्यपादता होनी चाहिये। पूज्यपादता संयमकी प्रकर्षता एवं ज्ञानकी निर्मलताके बिना हो नहीं सकती। अतएव निष्कर्ष निकला कि पूज्यपाद द्वारा प्रणीत जो उपदेश होगा वह न केवल इष्ट अपितु प्राणि-हितकारक एवं स्वस्वरूपावबोधक भी होगा। प्रसन्नता है कि पाठकोंके समक्ष आज श्रीपूज्यपादस्वामी जिनका कि दूसरा नाम देवनन्द्याचार्य भी था, उनके द्वारा प्रतिपादित इष्ट-उपदेश ( इष्टोपदेश ) को, अनेक भाषाओंके गद्य-पद्यानुवादों सहित, सम्पादित कर सामने लानेका अवसर प्राप्त हो रहा है। इसके पहिले कि आगे लिखी जानेवाली पंक्तियों में ग्रन्थके रचयिता एवं उसमें वणित विषयके बारेमें कुछ संकेत करूँ या परिचय दै. मैं सेठ मणीलालजी रेवाशंकरजी जौहरी ऑ० व्य० और कुन्दनलालजी जैन मैनेजर श्रीरायचन्द्रजैनशास्त्रमाला बम्बईको धन्यवाद देना अपना कर्तव्य समझता हूँ, जिनकी प्रेरणाके परिणामस्वरूप यह ग्रन्थ इस रूपमें आप महाशयोंके समक्ष रखने में समर्थ हो सका हूँ। ग्रन्थकारका परिचय वेद (ज्ञान) वृक्षको सिद्धान्त, दर्शन, व्याकरण, साहित्य, वैद्यक आदि शाखा-प्रशाखाओंके पारंगत, अनेक ग्रन्थोंके प्रणेता, देवोंके द्वारा पूजित श्रीपूज्यपादस्वामीका जन्म कर्नाटक प्रांतके अन्तर्गत कोलंगल नामके नगर में हआ था। आपके पिताजीका नाम श्रीमाधवभद्र तथा माताका नाम श्रीदेवी था। आपने अपने जन्म द्वारा ब्राह्मण कुलको विभूषित किया था । कन्नड भाषामें चन्द्रय्य कवि द्वारा लिखित पूज्यपादचरितसे ज्ञात होता है कि इनका नाम जन्मसे ही पूज्यपाद था किन्तु जब इस तथ्यको श्रवणबेलगोलाके ४० वें 'शिलालेखके प्रकाशमें देखनेका प्रयत्न करते हैं तो यह प्रमाणताको प्राप्त नहीं होता है। इनका दीक्षा-धारणके समय देवनन्दी नाम था। इसके बाद बुद्धिवैभवके विकासके वशसे इनका जिनेन्द्रबुद्धि नाम हुआ तथा देवताओंने इनके चरणकमलोंकी पूजा की, अतः जगतीतलपर पूज्य (१) यो देवनन्दि प्रथमाभिधानो, बुद्धया महत्या स जिनेन्द्रबुद्धिः ।। श्रीपूज्यपादोऽजनि देवताभिर्यत्पूजितं पादयुगं यदीयम् ॥ श्र० शि० क्र० सं० ४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001477
Book TitleIshtopadesha
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorShitalprasad, Champat Rai Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1986
Total Pages124
LanguagePrakrit, Sanskrit, Marathi, Gujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Principle
File Size9 MB
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