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________________ शोलापुर निवासी विद्वदूर पं० बंशीधरजी शास्त्रीने इसका प्रूफ संशोधन बड़ी तत्परता और लगनसे किया है। एतदथं पंडितजीको अनेक धन्यवाद हैं। आप ग्रन्थ-सम्पादन-कला में बड़े निपुण हैं। आपने प्रमेयकमलमार्तण्ड, अष्टसहस्री, जैनेन्द्रप्रक्रियादि महान ग्रन्थोंका सम्पादन एवं संशोधन किया है । ग्रन्थमें उद्धृत श्लोकों गाथाओंके मूल-स्थानोंको ढूँढ़ने में बहुत प्रयत्न किया फिर भी कितनोंका पता नहीं लगा। अन्तमें एक बार पुनः ग्रन्थ-प्रकाशनमें सहायक होनेवाले टीकाकारों, पद्यानुवादकों, संशोधकों आदि समस्त सज्जनोंको धन्यवाद देते हुए विराम लेते हैं । जौहरी बाजार, बम्बई नं २ निवेदकमहावीरजयन्ती, वीर-सं० २४८० प्रकाशक प्रकाशकके दो शब्द (तृतीय संस्करण) 'इष्टोपदेश'को मूल रचना संक्षिप्त होते हुए भी कथनका प्रकार विशाल और वैराग्यपूर्ण है । संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी-इन तीन टोकाओं के साथ प्रकृत रचना सचमुच और भी मधुर बन गई है। इसके साथ चार विद्वानों द्वारा हिन्दी, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी पद्यानुवाद भी इसमें सम्मिलित है । इस कारण यह अन्य सभी लोगोंके लिये उपयोगी है। श्रीपूज्यपादस्वामीने इस ग्रन्थमें बहुत ही सुन्दर ढङ्गसे संसार दुःखका प्रतिपादनकर इष्ट अर्थात् मोक्षसुखका उपदेश दिया है। संसारी जीवको बाह्य दृष्टिको अंतर्मुख करनेके लिये यह वैराग्यपूर्ण और मनन करने योग्य उत्तम ग्रन्थ है । समाधिशतक (समाधितन्त्र) की तरह यह भी उपदेशबोध देनेवाला महान् आध्यात्मिक ग्रन्थ है। उपदेशबोधका परिणमन होने के बाद ही जीवमें सिद्धान्तबोध ( द्रव्यानुयोग ) समझनेको योग्यता आती है। श्रीपरमश्रुतप्रभावक मण्डलकी व्यवस्था कई बरसोंसे श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगासके ट्रस्टी ही कर रहे है। तदन्तर्गत इस ग्रन्थकी तृतीयावृत्ति प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त आनन्द होता है। इस मण्डलका उद्देश्य सत्श्रुतका प्रचार करना ही है। पाठकगण महान् पुरुषोंकी कृतियोंका स्वाध्याय द्वारा अधिकाधिक लाभ उठाकर हमारा उत्साह वर्धमान करें यही अभ्यर्थना । कार्तिक पूर्णिमा । -प्रकाशक विक्रम संवत् २०४२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001477
Book TitleIshtopadesha
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorShitalprasad, Champat Rai Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1986
Total Pages124
LanguagePrakrit, Sanskrit, Marathi, Gujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Principle
File Size9 MB
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