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[84] ससि-जुण्ह जूअमिव मंत चोर, जिय दिवस गुत्त घण करइ जोर ।। ४०७ इम सुणिवि सवणि उट्ठिउ पयंड, करि करवि कुमर करवाल-दंड । खलकंति चूडि चल-पाणि पाणि, तव झल्लवि पल्लवि कुमर राणि ॥४०८ इम जंपइ नाह म होसि मुद्ध, इम जाइ कोवि संपइ अबुद्ध । तव बुल्लइ कुमर सुणीइ-मम्म, किम पलइ रमणि इम सामि-धम्म ॥४०९
गाथा ( श्री महान(नि)सीथे ।) आएसमवी साणं, पमाण-पुव्वं तहत्ति नायघं । मंगलममंगल वा, तत्थ वियारो न कायव्वो ।। ४१० इणमेव जीवियव्वं, निच्चं सुअ-भिच्च-सीस-रयणाणं । जं पुज्ज-पियर-सामिअ-गुरूण मुह वाय-कारित्तं ॥ ४११ नाणमवहीलणं जं, सुंदरि तं ताण सत्तिमिसरूवं । विहियं विडंबणं विहि-कारणदोसेण पुव्वेण ॥ ४१२
दूहउ इम निसुणिय पिय वयण तव, बुल्लइ राय-कुमारि । राय-नीइ निउणेक्क-वर, विज्झति(?) अवधारि ।
कुंडलिया जिण-सासणि जिणि नवि कही सिद्धि पक्खि एगति । जिम धणु-गुण बिहं सरलपणि, सर मिल्हणा न जंति ॥ सर मिल्हणा न जंति सरलपणि गुण-कोवंडह निच्चानिच्च-पयार सार जग जिम मय-भंडह । जिणवर-भासिय-वयण कहवि अन्नह इम वासण तं एगंत सुअलिय एम जंपइ जिण-सासण ॥ ४१३ तिणि कारणि एगंतपणि, निव-धम्मह वीसास ।। नवि किज्जइ सरलत्तगुणि, जिम दोरी विण पास ।। जिम दोरी विण पास, भास इम सुणीइ सत्थिहिँ सुणिउ अहव किहँ दिट्ठ राय मित्तत्ति परमत्थिहिँ
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