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पद्धडी चल्लिउ कुमर निसि एम चिंति, कमलुज्जल-कोमलकाय-कंति । पक्खरिउ पवण-जव वर-पवंग, तसु उप्परि आसण-ठाण-रंग ॥१०५ चडि चल्लिउ चंचलि तुरय-वेग, मण पवण सुयण बल हूअ अणेग। दिइ देविय देवी वाम सद्द, ललियंगकुमर तुम्ह होइ भद्द ॥१०६ भइरव भय वारइ दहिणंगि, चिवरिय चतुर पणि चवइ अंगि। राया रायत्तण कहइ वाम, लालिय सवि टालइ वेरि ठाम ॥१०७ दाहिणि दिसि हुइ हणुमंत हक्क जाणि कि जय कुमर पयाण-ढक्क । सारंग नाम बहु अत्थ होइं, ते सयल सबल दाहिणइ जोइ ॥१०८ हणमंत हरिण चातक चकोर, बग सारस सारय हंस मोर। सावड सुणय-वि भला एअ, जिम-बुल्लिय आगम-ग्रंथि जेअ॥१०९ करि करिय कुमर करवाल मित्त, जे सबल सया उज्जोय-चित्त । भय-भीडई सारइ बहु अ काम, जिणि करि सूरत्तण लहइ नाम ॥११० ते समरथ सुदढ सहाय एक तसु वल-दलि चल्लिउ कुमर छेक।। तसु गमण मणिंगिय बुद्ध जाम, सज्जण पुण पुट्ठिहि थियउ ताम ॥१११
अप्पा गुण दोस मुणइ स अप्प, जिम बुज्झइ सप्प हत्थि सिण सप्प । तिम सज्जण दुज्जण निय-सुहाइं, सुपुरिस सच्छह छिण-कच्छ छाइ ॥११२ उत्तम नवि करइ वियार एम, पर-अप्प-विगति नवि रोस पेम । सम-सत्तु-मित्त उत्तम चरित्त, सम-विसम-समय पर-कज्जि चित्त ॥११३
दहा सज्जण अतिहि पराभविउ, मनिहिँ न-आणइ डंस । छेदिउ भेदिउ दूहविउ, मधुरउ वाजइ वंस ॥११४ उवयारह उवयारडउ, सव्वह लोय करेइ० ।।११५
__ षट्पद नवि जंपइ परदोस अप्प पर-जणु-गुण वच्चइँ धण-जुव्वण-गुरु-माण-दाण-माणिहिँ नवि मच्चइँ अप्प धरइँ संतोस तोस मन्नइँ पर-रिद्धिहिँ परपीडइ परजलइँ टलइँ पर कूड कुबुद्धिहिँ उवयार करइँ उवयार विण, अप्प पसंस न निंद पर,
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