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________________ प्रास्ताविक सन् 1918 तक अपभ्रश साहित्य विशेष प्रकट नहीं हुआ था अतः तब तक व्याकरण तथा भाषाकी दृष्टि से अपभ्रंश विषयक केवल जानकारी देने के प्रयत्न किये गये थे । आगे चलकर पाण्डुलिपियोंकी सूचि तथा महत्त्वपूर्ण कृतियों का संपादन गति से होने लगा और भाषा तथा साहित्य की दृष्टि से भी विस्तृत और सूक्ष्म अध्ययन होने लगा । अपभ्रंशविषयक प्राचीन व्याकरणोंके संपादन के क्षेत्र में होर्नले, पिशेल, पंडित, ग्रिअर्सन, त्रिवेदी, गुलेरी, देसाई, वैद्य, नीत्तीदोल्ची, घोष आदिने; व्याकरण के क्षेत्रमें; पिशेल, याकोबी, आल्स्डोर्फ, एजर्टन, ग्रे, तगारे, नीत्ती-दोल्ची, सेन, भायाणी, श्वार्क्सशील्ड, व्यास आदिने; भाषास्वरुप के क्षेत्रमें होर्नले, भांडारकर, बीम्स, ग्रिअर्सन, ब्लोख, टर्नर, तेस्सितोरी, चेटर्जी, नरसिहराव, दोशी आदिने; शब्दकोश के विषय में पिशेल, ब्युलर, बेनर्जी, रामानुजस्वामी, शेठ, एजर्टन, आल्स्डोर्फ, याकोबी, भायाणी आदिने; साहित्यकृतिओंके विषयमें पंडित, याकोबी, शहीदुल्ला, मोदी, गांधी, शास्त्री, आल्स्डोर्फ, घोष, वेलणकर, जैन, वैद्य, उपाध्ये, जिनविजयजी, सांकृत्यायन, भायाणी, शाह आदिने साहित्यविषयक जानकारी, इतिहास और अन्य चर्चा के संदर्भ में दलाल, याकोबी, गांधी, प्रेमी, गुणे, आल्स्डोर्फ, जैन, देसाई, जिनविजयजी, शास्त्री, भायाणी, कोछड, घोषाल, कात्रे, द ब्रीस आदिने कार्य किया है । हमारे यहाँ अपभ्रंशके प्राचीन व्याकरण साहित्यमें से जो फूटकर सामग्री बची है उसमें हेमचन्द्राचार्य के 'सिद्धहेम' व्याकरण का अपभ्रंश विभाग सब से ज्यादा विस्तृत और महत्त्वका है । यह अंश न केवल गुजराती, हिंदी आदि भाषाओं के उद्गम की दृष्टि से बल्कि उसमें उदाहरण के रूप में दिये गये पद्यों की साहित्यकता की दृष्टि से भी बहुत मूल्यवान है । __ हेमचन्द्राचार्य के व्याकरण के अपभ्रंशविभाग का (या केवल उदाहरणों का), अलग रूप मे या प्राकृतविभाग के साथ, उदयसौभाग्यगणिने संस्कृत में, पिशेल ने जर्मन में वैद्य ने अंग्रजी में, गुलेरी ने हिन्दी में और मो. द. देशाई, ही. र. कापडिया, के. का. शास्त्री तथा ज. पटेल और ह. बूच ने गुजराती में भाषांतर किया है । आल्स्डोर्फ, बेचरदास, द वीस आदि ने फुटकर पद्यों की व्याख्या के कुछ प्रयत्न किये हैं । व्यास ने पाण्डुलिपियों के आधार पर पाठशुद्धि और उदाहरणों की अर्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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