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'प्रवास पर गया वह भी लौटेगा, मैं क्रोध करूँगी और वह भी (मुझे) मनायेगा-प्रियतम के विषय मैं सोचे हुए मनोरथों की ऐसी माला किसी की ही फलवती होती है।
आबिहिइ पिओ चुंबिहिइ निठुरं चुंबिऊण पुच्छिहिइ । दइए कुसल त्ति तुमं नमो नमो ताण दिवसाणं ।।
('वज्जालग्ग', 784) "प्रिय आयेगा, गाढ चुम्बन लेगा, चुमकर पूछेगा, 'प्रिया, तुं कुशल तो है न?-ऐसे दिनों को अनेक नमस्कार ।'
417/1 = 'शङ्गारप्रकाश', पृ 280 पर का भ्रष्ट पाठवाला उदाहरण । 418/6 = 'कुमारपाल-प्रतिबोध', पृ. 12 पर का पद्य । 418/7 = 'दोहापाहुड' 176 का प्रारंभ । 419/1 के साथ तुलनीय :
घम्मि न वेच्चई रूअडउ । ('जिनदत्ताख्यान-द्वय', पृ. 29, पद्य 144). 419/5. के साथ तुलनीय :
जसु पवसंत न पवसिया, मुइअ विओइ ण जासु । लज्जिज्नउं संदेसडउ, दिती पहिय पियासु ।।
('संदेशरासक', 70) 420/3 = 'सरस्वतीकंठाभरण', 3/62, 'शृगरप्रकाश', पृ. 268 पर मिलता पद्य.
421/1. कसर = 'अधम बैल, गलिया/सुस्त बैल', (देशीनाममाला'). स्वयंभूकृत 'पउमचरिय' में 'जर-कसरा इव कदमि खुत्ता' 'किचड़ में निमग्न बूढे सुस्त बैल जैसा ।' विशेष के लिये देखिये Ratna Shriyan, Rare Words from the Mahāpurāna',
422/2. घंघल का सही अर्थ 'झकट' नहीं, 'संकट' है । झकट भ्रष्ट पाठ जान पडता है । तुलनीय
सह कोझरेहिं गिरिणो सरियाओ विचित्त-वंक-वलणेहिं । घंधल-सएहिं सुयणा, विणिम्मिया हय-कयंतेण ॥
('पुहइचंदचरिय,' पृ. 128, पं. 16)
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