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'मुख अति प्रसन्न हों, संभाषण करे: (यों ) पूर्वजन्म का स्नेह का लोगों की दृष्टि द्वारा पता चलता है ।'
366/1 का अनुकरण 'दोहा - पाहुड' 88 में मिलता है :
सयल - वि को -वि तडफडइ
सिद्धत्तणहु तणेण । चित्तएं निम्मलएण ॥
परि पावियइ
सिद्धत्तणु 367/1 के साथ तुलनीय :
जह सो न एइ गेहूं सो होही मज्झ पिओं
ता दूइ अहोमुही तुमं जो तुज्झ न खंडए
'हे दूती, यदि वह घर नहीं आ रहा तो इस में तुम्हारा सिर क्यों झुक गया है ? तुम्हारा वचन ( तथा 'वदन' ) जो खण्डित न करे वही मेरा प्रिय हो सकता है ।
कीस । वयणं ॥
(' वज्जाला', 417)
567/3 = 'परमात्मा प्रकाश' 2/76 |
( पाठांतर 'बलि किउ माणुस - जन्मडा देक्खंत हूँ पर साद' ।)
367/4 के साथ तुलनीय :
किं गतेन यदि सा न जीवति प्राणिति प्रियतमा तथापि किम् । इत्युदीक्ष्य नवमेघमालिकां न प्रयाति पथिकः स्वमन्दिरम् || ( भर्तृहरि : ''गारशतक, 67 ) 368 के साथ तुलनोय : मालइ - विरहे रे तरुण - मसल मा रुवसु निब्भरुक्कंठं | ('asarem', 241) ' हे तरुण भ्रमर, मालती - विरह में तुम ऊँची आवाज में भरपूर रो मत ।' 370/2 के उत्तरार्ध के साथ तुलनीय :
सा तुज्झ वलहा, तं सि मज्झ,
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वेसो सि तीअ, तुज्झ अहं । ( ' सप्तशतक, ' 2 /26) 'वह है तुम्हे प्रिय, तुम हो मुझे, तुम हो उसके धिक्कार का पात्र, (तो) मैं तुम्हारे (धिकार का पात्र ) ।'
3/76 = 'कुमारपाल - प्रतिबोध', पृ. 257.
( पाठान्तर
थोडा, इउ कायर चिंतंति, कइ उज्जोउ ।
377/1. 'कुमारपाल - प्रतिबोध', पृ. 85 पर मिलता पद्य.
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