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________________ छाया सखि, चम्पक-कुसुमस्य मध्ये प्रविष्टः भ्रमरः कनके उपविष्टः इन्द्रनील: इव शोभते । अनुवाद सखी, चंपा के फूल में पैठा हुआ भंवर सोने में बैठे हुए ( = मढे हुए) इन्द्रनील जैसा शोभित हो रहा है । वृत्ति उदा० (६) निरुवम-रसु पिएँ पिअवि जणु (देखिये 401/3) । 445 लिङ्गमतन्त्रम् ॥ लिंग अतंत्र । वृत्ति अपभ्रंशे लिङ्गमतन्त्रं व्यभिचारि प्रायो भवति । अपभ्रंश में लिंग कईबार अतंत्र-यानि कि अनियमित होता है । उदा० (१) गय-कुंभइँ दारंतु । (देखिये 345) । वृत्ति अत्र पुंलिङ्गस्य नपुंसकत्वम् । यहाँ पुंल्लिंग का नपुंसक होना । उदा० (२) अब्भा लग्गा डुंगरे हि पहिउ ग्डंतउ जार । जो एहा गिरि-गिलण-मणु सो किं धणहे धणाइ ।। शब्दार्थ अब्भा-अभ्राणि । लग्गा- लग्गानि । डुंगारे हि-गिरिषु । पहिउ-पथिकः । रडंत उ--रटन् । जाइ- याति । जो-यः । छहा-ईकू । गिरि-गिलण-मणुगिरि-गिलन-मनाः । सो-सः | किं-किम । धणहे (दे.)-प्रियाया: (= प्रियाम् प्रति) । धणाइ-धनम् इव आचरति ( - रक्षते) अभ्राणि गिरिषु लग्गानि । पथिक: रटन् याति-य: ईदृक् गिरि-गिलन मनाः सः किम् प्रियाम् रक्षते (इति)। अनुवाद बादल पहाड़ों से लिपटे । पथिक रडते (रडते) जाता है : जो ऐसे पहाडों को निगलना चाहता हे वह पिया का क्या रक्षण करे ( = करेंगे)? अत्र 'अब्भा' इति नपुंसकस्य पुस्त्वम् । यहाँ 'अम्मा' ऐसे नपुंसक का पुंल्लिंग । उदा० (३) पाइ विलग्गी अंत्रडी सिरु ल्हसिउ खंघम्सु । तो-वि कटारइ हत्थ डउ बलिकिजउँ कंतम् ।। शब्दार्थ पाइ-पादे । विलग्गी-विलना ( = विलग्नम् ) । अंबडी-अन्त्रम् । सिरु शिरस । ल्हसिउ (दे.)-स्रस्तम् । खंघस्सु-स्कन्धस्य (=स्वन्धम् प्रति) तो-वि-ततः अपि । कटारइ (दे.)-क्षुरिकायाम् । हत्थड उ-हस्तः । बलिकिन्ज-बलीक्रिये । कंतस्सु-कान्ताय । छाया अन्त्रम् पादे विलमम् । शिरः स्कन्धम् (प्रति) स्त्रस्तम् । ततः अपि क्षुरिकायाम् हस्तः । (एतादृशेः) कान्ताय बलीक्रिये । अनुवाद आते पैर में लिपटी हैं, सिर कधे पर लटक गया है, (परंतु) फिर भी छाया वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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