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________________ १०४ अनुवाद वह पनीहारिन (अपने उन) दो करों को चूमकर जीवन टिकाये हुए हैं, जिन (करों ने) उस मुंज के प्रतिबिंबवाला जल घंघोले बिना पीया था। वृत्ति अविउदा० (४) बाह विछोडवि जाहि तुहँ हउँ तेव-इ को दोसु । हिअय-ठिउ जई नीसरहि जाणउँ मुंज स-रोसु ॥ शब्दार्थ बाह-बाहुम् । विछोडवि (दे.)-विमोच्य । जाहि-यासि । तुहुँ-स्वम् । हउँ--अहम । तेव-इ-तथा अपि । को-कः । दोसु-दोषः । हिअयट्ठिउ-ह्रदय-स्थितः (= हृदयात्)। जइ-यदि । नीसरहि-निःसरसि । जाणउ-जानामि । मुंज-मुञ्ज । स-रोसु-सराषः । छाया बाहुम् विमोच्य (यथा) त्वम् यासि, तथा अहम् अपि । कः दोषः । मुन्न, यदि हृदयात् निःसरसि (ततः) जानामि (त्वम् ) स-रोषः (इति) । अनुवाद बाँह छुड़ाकर तुम चले जाते हो, वैसे मैं भी (जाउँ)-(इसमें) कौन सा दोष (होगा) ? (परंतु) याद (मेरे हृदय से निकल जाओ तो, हे मुंज, (मैं) जानें (कि तुम वाकई) गुस्सा हुए हो । 440 एप्प्येपिण्वेव्येविणबः । वृत्ति उदा० 'एप्पि', 'एप्पिणु', 'एवि', 'एविणु' । अपभ्रंशे कट प्रत्य-स्य ‘एप्पि', 'एप्पिणु', 'एवि', 'एविणु' इत्येते चत्वार आदेशा भवन्ति । अपभ्रंश में 'क्वा' प्रत्यय के ‘एप्पि', 'एप्पिणु', 'एवि', 'एविणु' ऐसे चार आदेश होते हैं । जेप्पि असेसु कसाय-वलु देप्पिणु अभउ जयस्सु । लेवि महन्वय सिवु लहहि झाएविणु तत्तस्सु ॥ जेप्पि-जित्वा । असेसु-अशेषम् | कसाय-बलु-कषाय-बलम् । देप्पिणुदत्वा-अभउ-अभयम् । जयस्सु-जगते । लेवि-गृहीत्वा । महत्वय-महाव्रतानि । सिवु-शिवम् । लहहि -लभन्ते । झाएविणु-ध्यात्वा । तत्तस्सुतत्त्वस्य ( = तत्त्वम् )। अशेषम् कषाय-बलम् जित्वा, जगते अभयं दत्वा, महाव्रतानि गृहीत्वा, तत्त्वम् (च) ध्यात्वा, (साधवः) शिवम लभन्ते । शब्दार्थ छाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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