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आवार लई, अनं ( ४ ) एकाक्षर कोशोनो आवार लई, मारीतोडीने मद्र शब्दानी व्युत्पत्ति परापूर्वथी आपता आव्या छे. बेचरदास दोशीए आ परंपराने अनुसरीने तेमना 'देशीशब्दसग्रह' मां २५० जेटला पृष्ठमां देना.ना घणाखरा देश्य शब्दान व्युत्पन्न करी वताव्या छे. आ एक घणो ज समर्थ प्रयत्न के अने तेमांथी से का देश्य शब्दाना मूळना विचार करवा माटेनी मूल्यवान सामग्री के सकेता आपणने मळे छे. परंतु अतिहासिक भाषाविज्ञान अने भारतीय आर्यना परिवर्तनना इतिहासनी दृष्टि देrशीनी घणी व्युत्पत्तिओ केवळ अटकलों के गये तम करीने शब्द व्युत्पन्न करवाना आग्रहह्नां परिणाम होवानु जोई शकाय के अने ते कारण ते निराधार के अप्रतीतिकर ठरे छे.
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रामानुजस्वामीए तेमना संपादन अते आपला शब्दकोशमां घणा देश्य शब्दानां मूळ सूचव्यां छे. पूर्वे थयेला आ विषयने लगता कामने आधार बेनरजीए एवा अंदाज छेके देना.ना देश्य शब्दोमां १०० तत्सम छे, १८५० 'छपा' तद्भव छे, ५२८ शंकास्पद तद्भव छे अने १५०० चोक्खा देश्य एटले के संस्कृतमाथी व्युत्पन्न न करी शकाता शब्द छे. ए १५००मांधी ८०० अर्वाचीन भारतीय आर्य भाषाओं मां प्रचलित छे; बाकी रहेला आये तर भाषामांथी आव्या होवाना सजव छे. बेनरजीना १९३१ना अंदाजमां ते पछी उपलब्ध थयेला प्राकृत सहित्यना अने संशोधनना प्रकाशमां ठीक-ठीक फेरफार करवो पडशे. जे केटलाक शब्दानु मूळ द्राविडी भाषाओ मां अने थे।डाकनुं मूळ फारसी के अरबी भाषामा हावानु अभ्यासीओए चीं छे, तेमां पण पुनर्विचारणाने माटे घणा अवकाश के. टूकमां आवों बधां तारणोने चुस्त धारणे चकासीने चोकस निर्णय करवानु हजी घणा शब्दानी बातमां बाकी है.
केटलीक चर्चा पछी अमे देश्य शब्दोनु कामचलाउ व्यवहारु वर्गीकरण नका कर्यु हनुं, ते रत्ना श्रीयने तेमना देशी शब्दोना अध्ययनमां अपनाव्युं छे. उपर नाला बेनरजीना वर्गीकरणथी तेमां वधु झीणवट छे. ते वर्गीकरण आ प्रमाण छे :
(१) संस्कृतमांथी सीधा ज निष्पन्न करी शकाता शब्दों.
(२) संस्कृतमांथी निष्पन्न पण विशिष्ट के परिवर्तित अर्थवाला शब्द. (३) संस्कृतमांथी अंशतः व्युत्पन्न शब्दो.
(४) जे शब्दोंने मळता शब्दों उत्तरकालीन संस्कृत कोशो अने एवा बजा स्रोतामां मळे छे तेरा शब्दो.
(५) रवानुकारी शब्दो (६) विदेशी शब्दो
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