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________________ तम न.' आ कारणे ए दृष्टांतगाथाओमां केटलीक क्लिष्टता के आयाससाध्यतानो अनुभन आपणने थाय ते अनिवार्य छे अने ए कारणे पिशेल वगेरेए ए गाथाओनी कठोर टीका पण करी छे. परंतु बेनरजीए आ बाबतमा हेमचंद्रनो योग्य वचाव करीने कहा ले के ए गाथाओ प्राकृत कवितामां हेमचंद्रनु मूल्यवान प्रदान छे. बेचरदास दोशीए पबधी दृष्टांतगाथाओनु अर्थ घटन करीने गुजरातीमा अनुवाद आपवानो सभर्थ प्रयास कयों ने. परंतु ए दृष्टांतगाथाओ निरूपित देश्य शब्दोना विवरणनु एक अनिवार्य अंग होवानु पिशेल जोई नहाता शक्या. अमुक देय शब्दना जे पर्यायशब्द प्राकृतभा (मूळ गाथामां) के संस्कृतमां (टीकामां) आपेला छे ते घणी वार अनेकार्थ होय छे अने त्याने तेनो कयो अर्थ कोशकारने अभिप्रेत छे तेनु स्पष्टीकरण शब्दना वस्तुतः प्रयोग करीने, ते सदर्भ ने आधारे ज बतावी शकाय. नहीं तो घणी सदिग्धता रहे. . बेनरजीए गणतरी करी छे के देना.नी ६३४ दृष्टांतगाथाओमाथी ४१० शृंगारिक छ; १५९ कीर्ण विषयनी छे अने १०५मां कुभारपाल के जयसिंहनी प्रशस्ति छे-ए चाटुवाच्यो छे. ...७. देदय शब्दानां मूळ हेमचंद्र व्याकरणशास्त्रनी स्थापित परंपरा अनुसार जे शब्दोंने देश्य गण्या छे, तमाशी. घणा शब्दो आपणी अर्वाचीन भाषाविज्ञाननी दृष्टिए संस्कृत मूळना के तद्भव होवानु आपणे वतावी शकीए छीए. मोरिस, पिशेल, रामानुजस्वामी वगेरेए आ दिशाम केटलंक कार्य कयु छे. संस्कृत शब्दानी व्युत्पत्ति परत्वेनी एक परंपरा बधो नामने धातुज गणीने जे शब्दाना प्रकृतिप्रत्यय वगेरे रूपे विभाग न करी शकाय तेवा रूढ शब्दोनी पण व्युत्पत्ति आपवानी प्रथा यास्कनी पण पूर्वेना समयथी प्रचलित हती. व्याकरणकारा, कोशकारो वगेरे (१) पाणिनिनां 'उणादयो बहुलम्' अने 'वृषादरायः' ए सूत्रना आधार लई, (२) धातुपाठाना अल्पपरिचित धातुओनो आधार लई, (३) 'धातुओ अनेकार्थ हाय छे', 'शब्दा अनेकार्थ होय छे' एवा मताना ४. दयाश्रय तथा द्विसधान वगेरे प्रकारनां काव्यानी रचना माटे पण आवी ज आवडत जरूरी होय छे. ५... मना प्रयास पछी पण केटलीक गाथाओनो अर्थ बरावर खेसाडवामां मुश्केलीओ रहे छे अने त नवा प्रयत्न मागे छे. ... नस्कृत-प्राकृता जैन व्याकरण और कोश की परंपरा' (१९७७)मां प्रकाशित -क लेखमा में उदाहरण लेखे देना.ना २५० जेटला देश्य शब्दान' संस्कृत नार आयं . (जो आ संग्रहमां पृ. १३५. १७३) .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001462
Book TitleStudies in Desya Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1988
Total Pages316
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English, Dictionary, & literature
File Size14 MB
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