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________________ अने प्राकृत धात्वादेशानी आ दृष्टिए चकासणी करवानी जरूर हाईन आ ता ए दिशामां करेली एक नानकडी शरूआत ज छे. प्राकृत- अपभ्रंश साहित्यमा प्रयुक्त देश्य शब्दानु स्वरूप अने अर्थ निश्चित करवा अने तेननो देना.मां नोंधेला शब्द साथे मेळ बेसारवा प्रत्येक शब्दने लगतां पाठांतरो, संदर्ता वगेरनी झीणवटथी चर्चा करवी घणी वार जरुरी बने छे. ए पद्धतिए में जैन आगमसाहित्यमां वपरायला शब्दानी तथा 'विडिरिल्ल', 'उब्बिट्ट', 'शुटुंकिय' अने 'ऊसुरुमुंभिय' जेवा शब्दानी केटलाक लेखो द्वारा चर्चा करी छे. मुनि दुलहराज संपादित 'दशी शब्दकोश' (१९८८)मां जैन आगमन था, तमना परनी व्याख्याओ तथा हेमचंद्रनी देना.मांथी देश्य शब्दा स्थाननिदेश अने पाठांशनां उद्धरण माथे आप्यां छे, ते उपरांत 'पाइअसहमहष्णवा'मांधी तथा प्रकाशित प्राकृतअपभ्रंश साहित्कृतिओने अंत तमना संपादकाए तारवीने मूकेला शब्दकोशमांथी देय शब्दो संगृहीत कर्या छे. आ रीत जैन आगमसाहित्यमा प्रयुक्त प्राचीन दश्य शब्दों तथा अन्य ग्रंथानी देश्यसामग्री जेमां संगृहीत करी छ, तवा दशीशब्दकेश तयार करावी प्रकाशित करवानु जैन विश्व भारतीनु प्रशम्य कार्य , शब्दांना अध्ययन माटे एक धणं ज उपयोगी साधन पूलं पाढे छे. ६. देना.नु सामान्य स्वरूप अने निरूपणपद्धति हमचंद्र ना.मां संगृहीत देय शब्दाने तमना आद्य वर्णना क्रम अनुसार आट वर्गामा व चेला छे. ए रीते कुठ ७८३ गाथामां ३९७८ शब्दांना समावेश करेला छे. ते-ते वर्णथी शरू थता शब्दाने तमनी अक्षरसंख्याना क्रमे गाठव्या छे अने पहेला एकार्थ अने पछी अनेकार्थ शब्दा नांध्या छे.देना. उपर पोतानी संस्कृत वृत्तिमां हेम बद्रे घणाखरा प्राकृत धात्वा शोना पण समावेश कर्यो छ अने नांधेला शब्दाना स्वरूप अने अर्थ विशेनां मतांतरा पण आप्यां ले. ए. वधाने जो गणतरीमा लई ता पर नांधेली शब्दसंख्या वमणीत्रमणी थवा संभव छ. द-त गाथामां नोधला दय शब्दाना प्रयांगना उदाहरण लब (अनेकार्थ शब्दान बाद करतां) हेम वेद ६२२ काव्यात्मक दृष्टांतगाथा रचीने मूकी . आद्य वर्णनी अंनं अक्षरसख्यानी समानताने आधारे एक ज गाथामां गूथायेला शब्दो बच्चे अर्थदृष्टिा घणु लता वादरायण-गवध ज हाय (एक ज व्याकरणसूत्रमा साधासाथ गूधायेला 'श्वन', 'युवन्', 'मघवन' बचे हाई शके तेवा). एवा शब्दांना अर्थाने मांकळी सुसंगत अमल, कन्यामक रचना करकामा वेटल रचनाकौशल जोहए मसजी टाकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001462
Book TitleStudies in Desya Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1988
Total Pages316
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English, Dictionary, & literature
File Size14 MB
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