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________________ ५. समस्याउकेलना प्रारंभ दुमाग्ये एकबे अपवाद उकेलनी दिशामां कशा व्यवस्थित प्रयासेा नथो थया. ११२९मां प्रकाशित हरगोविंददास शेटना प्राकृत कोश 'पाइअसद्दमहण्णवा' द्वारा देना.ना अनेक देश्य शब्दाना साहित्यिक प्रयोगाना निर्देश मळे छे संग. श्रीमती रत्ना श्रीयने मारा मार्गदर्शन नीचे पुष्पदंतना अपभ्रंश पौराणिक महाकाव्य 'महापुराण'मा तेम ज तनी बीजी अपभ्रंश इतिओमां वपरायला चौद से। जेटला देश्य के विरल शब्दानु व्यवस्थित अध्ययन तेमना पीएच.डी. माटना शोधन धमां १९६२मां कयु छ (पुस्तकरूपे प्रकाशित १९६९मां), अन ते पछी तमण शान्तिसूरिकृत प्राकृत 'पुहवीचंदचरिय'मां प्रयुक्त नत्र से जेटला देश्य शब्दानु अध्ययन कर्यु (१९७२मा प्रकाशित थयेला ए ग्रंथने अंत आपेला शब्दकोशमां). देखीतु छे के आ प्रकारनां संख्याध तुलनात्मक अने समीक्षात्मक अध्ययनाने परिण.मे ज आपणे देना. तेम ज तना पूर्ववर्ती इतर कोशानी देश्य सामग्रीना किस स्वरूप अने अर्थना निर्णय करवानु काम अगळ चलावी शकीए. आ प्रकारना आगळ करवाना कार्यनी दिशामा पहेलां थोडांक कदम लेखे में १९६३मां आपेलांत्रण व्याख्यानमां (प्रथम १९६६मां प्रकाशित) आशरे छ से। देश्य अने विरल प्राकृत शब्दानी चर्चा करी हती तेमांना पहेला व्याख्यानमां देना.मां संगृहीत देश्य शब्दोमां, जे शब्द एक ज हाय पण विविध स्वरूपे आपेला हाय, तेवा शब्दानी चर्चा करी छे. एवा शब्दाना बे प्रकार छे : जेमना म्वरूपभेदना मूळमां लेखनदोष के लिपिगत वर्णना भ्रम हाय, अने जेमना स्वरूपभेदना मूळमां वास्तविक ध्वनिपरिवर्तन होय. पहेला प्रकारने सात वर्गमां अने बीजाने बत्रीश व मां वहेंचीने वर्ण परिवर्तनानु विश्लेषण कयु छ. बीजा व्याख्यानमां रामानुजस्वामीना देना.ना संपादनमा पोणा वसा जेटला शब्दाना करेला खोटा अर्थ सुधार्या छे.3 जीजा व्याख्यानमां स्वयंभून अपभ्रंश पौराणिक काव्य 'पउमचरिय'मां मळता दश्य शब्दानी चर्चा करी छे.. ए पछी १९६७मा प्रकाशित एक लेखमा में देना.ना केटलाक अनेकार्थ शब्दाना अर्थ भेदना मूळमां खरे खर जुदाजुदा बे अर्थ रहेला नथी, पण अर्थवाचक शब्दना लेखनभ्रमने कारण बे देशीकांगमां जाणे के ते शब्द जुदाजुदा अर्थ मां नोधाया छ एवा भ्रम थया छे ए हकीकत, वार शब्दानी विगते चर्चा करीने दर्शावी छे. सेंकडो देश्य शब्दा .. वेचरदास दाशीना ‘देशी शब्दसंग्रह'मां पण, जे शब्दाना रामानुजम्बामीए खाटो अर्थ को छे, ते शब्दाना साचा अर्थ करलो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001462
Book TitleStudies in Desya Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1988
Total Pages316
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English, Dictionary, & literature
File Size14 MB
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