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________________ २१ बावतमां तेमज बीजी वणी बावतामां सामान्य रीते ववाये प्राकृत व्याकरणका रोना अभिगम मात्र सैद्धांतिक करतां व्यवहारु वधु रह्यो है. जो आ मुद्दानु मूल्य आपणा मानमां बसे तो संस्कृत मूळना अने संस्कृतमांथी व्युत्पन्न नहीं थई शकता शब्दोने जुदा पाडवानी वावतमा प्राकृत व्याकरणकारो जाईए तवा चुस्त अने ससंगत नयी ए कारना आधुनिक अभ्यासीओंना बांधा वजूद वगारना लागे, अने केटलीक वार तो तेमां आपणने वांकदेखापणानेो दोष देवाय. देश्य शब्दांना अर्वाचीन समयमां थयेलां अध्ययनीए ए शब्दोना मूळ स्रोत कया ना ते विषय पर केटलाक प्रकाश पाड्यो छे. केटलाक देश्य शब्दोनु मूळ संस्कृत होवानु बतावी शकाय छे. ए शब्दो देश्य गणाया ते ए कारणे के जे ध्वनिपरिवर्तन के अर्थपरिवर्तनने परिणामे ते निष्पन्न श्रया छे, ते परिवर्तनों संकुल अने तरत न पकडाय तेवां छे. चीजा केटलाक देश्य शब्दोनां मूळरूप प्राचीन भारतीय आर्य शब्दो एवा छे, जेमनो जळवायेला के जाणीता साहित्यमांधी प्रयोग टांकी शकाती नक्षी, अथवा जेमना मूळ शब्द मात्र वैदिक भाषामां ज प्रयोजायो छे, अथवा तो भारतीयआर्यन पूर्ववर्ती भूमिकामांथी तेमना सगड मळे छे. बीजा केटलाक शब्दोना मूळरूप शब्द द्राविडी परिवारनी भाषाओमांथी के क्वचित फारसी - अरबीमांधी बतावी शकाय . परंतु आ रीते जूनी भूमिकाओमां अथवा तो अन्य भाषाओमां जेमनु मूळरूप होवा आपणे बतावी शकीए छीए. तेवा शब्दोंने वाजु पर राखीए, तो जेमनी व्युत्पत्ति अस्पष्ट के अज्ञात छे, तेवा बाकी रहेता शब्दानु प्रमाण घणुं माटुं छे. ४. देश्य शब्दसामग्रीनी समस्याओ देना. उपरनु हवं पछीन संशोधनकार्य वे संलग्न दिशामां चलाववानु छे: ते ते देश्य शब्द चोकस स्वरूप अने अर्थ निश्चित करवां तथा गर्नु प्रचलन अने व्युत्पत्ति निश्चित करां. आमांथी पहेली समस्यानां वे पास छे : प्रथम तो हेमचन्द्रे जे स्वरूपे अमुक देश्य शब्द नाभ्येो हता ते स्वरूप नक्की करवु आपणी पासे देना. नी हस्तप्रता छे, तमां देश्य शब्दोना लिखित स्वरूपने लगता अपरंपार अने चवाडावाळां पाठांतर मळे छे. पिशेले देना. ना तेमना संपादनमां पाठनिर्णयने लगती समस्याओनो समुचित ख्याल आया है. मणे सात हस्तप्रतामांश्री (अने सुधारेली आवृत्तिमां रामानुजस्वामीए वधारानी त्रण प्रतीमांथी) वधां पाठांतरा नोंव्यां छे अने मोटे भाग पाठ निश्चित करी आप्यो छे. परंतु तेमणे ए पण जणाव्यु ले के अनेक शब्दोनी बावतां कोई आधारभूत धोरणने अभाव, विविध जोडणीभेदो मांथी कोई एकली पसंदगी करवी घणी मुश्केल ले. क्वचित तेमणे आमां अर्वाचीन भारतीय Jain Education International For Private & Personal Use Only · www.jainelibrary.org
SR No.001462
Book TitleStudies in Desya Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1988
Total Pages316
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English, Dictionary, & literature
File Size14 MB
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