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________________ करीने पोतानी पसंदगी करी छे. ज्यां तेमने पुरावा अनिर्णायक लाग्या छ क ब पता तुल्यबळ लाग्या छे, त्यां तेमणे बंने विकल्प नांध्या छे. अनेक स्थळे संगृहीत शब्दो परत्वे पूर्ववर्ती साधनोमांथी उद्धरणा आध्यां छे, चर्चा करी छे अने अयोग्य मदाने। प्रतिवाद को छे. आ हकीकत, तेम ज तेमणे अनेक शब्दानी बाबतमा स्वीकारेली कल्पिक जोडणी अने वैकल्पिक अर्थी तथा पिशेले नांधेलां पाठांतरानुं अडाबीड जंगल-ए बधा उपरथी आपणने काईक ख्याल आवे छे के दश्य शब्दोना म्वरूप अने अर्थनी बाबतमा हेमचंद्रना समय सुधीमा केटला गूचवा डेा अने अव्यवस्था ऊभां थया हता, अने केवी विकट समस्याओना तेमने सामना करवा पडयो हशे. देश्य शब्दो ना देना निरूपणमा समग्रपणे जोतां समतुला, विशदता अने वैज्ञानिक सावधानांनी जे उच्च कक्षा आपणने प्रतीत थाय छे ते देना.ने हेमचंद्राचार्यनी एक बयु भगीरथ सिद्ध तरीके आपणी समक्ष स्थापे छे. तेमणे देशी शब्दोनुं क्षेत्र जे रीते सीमित कयु छे, तेमा मण आपणने उपर्युक्त गुणा जोवा मळे छे, केम के जे सिद्धांता अने संदर्भमाऊखु ते वेळा परंपराथी स्वीकार्य हतां, तेमनी मर्यादामा रहीने देशी शब्दप्रकारनी, चुस्त व्याख्या तो दूर रही पण कामचलाउ व्याख्या आपवानु पण महेलन हनु. शब्दमें देशी । गणवा माटे हेमचंद्रे त्रण धारण आप्यां छ : (१) स्वरूपगत असाध्यता : शब्दसिद्धिना स्वीकृत नियमने आधार जे शब्दो संस्कृतमांथी सिद्ध न थई शके के जेमनो प्रकृति-प्रत्यय-विभाग न गई शाफे ते देश्य शब्द. (२) अथगत असाध्यता : जे शब्दो स्वरूपथी संस्कृतमाथी सिद्ध यई शकता हाय पण जेमना अर्थ जुदो हाय (पछी भलेने ते मूलना अर्थगांधी साधी शकातो हाय) ल देश्य शब्दा. (३) पूर्वपरंपरा : केटलाक एवा शब्दा, जमने दखीतां संस्कृत साथे थाडापणा प्रयत्ने आपणे सांकळी शकीए तेम हाय, तो पण जेमने आगळना आदरणीय आने प्रमाणभूत कोशकारोए देशी गण्या हाय तेमने पण देशी गणरा. हेमचद्रे संस्कृत धातुआमांथी निष्पन्न न करी शकाता प्राकृत धातुआना से झातिक रीत देना.मां सीधेा समावेश नथी को. ते माटे तमणे एवं कारण आप्यु के के ए शब्दोने संस्कृतमांथी साधित प्रत्यया लगाडी शकाता हता. पहेलांना देशीकारानी पद्धति छोडी दईने हेमचंद्रे धात्वादेशोने 'सिद्धहेम' व्याकरणना प्राकृत विभागमा स्थान आप्यु छे अने तेम छतां पूर्वप्रचलित प्रथाने मान आपीने, तम ज उपयोगितानी दृष्टिए तेमणे बधा महत्त्वना धातुओने देना. उपरनी पोतानी टीकामां पण नांच्या ले. 3r Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001462
Book TitleStudies in Desya Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1988
Total Pages316
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English, Dictionary, & literature
File Size14 MB
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