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प्रासंगिक
आ बौका भागना [संपादननी प्रस्तावनामा
विशेष कसली शकु एवी परिस्थितिमा नथी. मात्र एटलु ज कहीश के मा "त्रिपटि शलाकापुरुष चरित्र" ग्रंथ संपादन कार्य पू. पा. आचार्य भगवान श्री विषयवस्तभसूरिजी महाराजना शिष्य मुनिश्री चरणविजयजीए शक कहतु तेनो प्रथम भाग सन् १९३६ मा पत्राकारे भने पुस्तकाकारे एम बन्ने स्वरूपे प्रकाशित ई चुक्यो छे से पढ़ी बीजो भाग पण तरत प्रकाशित करवानेो इरादो हतो म. पण भीमा भागनुं थोड काम थवा पछी मुनि चरणविजयी [काची उमरे कालधर्म पाया. एवा विद्वान साधुने। देहांत ए भमारा बधा माटे भगा व दुखनी बात मनाई छे. एमना स्वर्गवास पछी आ संपादन कार्य मारी पासे आम्
मारी पासे भी कामो हतां ण छतांय में ए स्वीकारी ली. पण ए पछीना वर्षोनों समय मारा माटे संघर्षण का पूरवार थयो के अने बणी भगचिंतनी पटनाओ ए समयमां बनी के.
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प्रथम तो मारी बीमारी ज शरु पई जे पण वर्षो सुची वाली, ते दरम्यान पाटन भी हेमचन्द्राचार्य ज्ञानमंदिरतु काम शरथयुं तेने व्यवस्थित करवामां केलांक वर्षो गया. ते पछी पू. पा. श्रीमान चतुरविजयजी महाराज कालधर्म पाया. ते पछी पू. पा. श्रीमान प्रवर्तकजी महाराज कालधर्म पाम्या एटले बीजी जबाबदारीमो पण आवी. एवामा प्रकाशननु काम शक थयुं भने विहार पण शरु थया.
आ घटनाओ एवी सतत रीते बनती रही के प्रस्तुत ग्रंथना संपादननु काम ठंडु पडतु गयुं अने ठेला ग. पणः क्यारे आगम संपादन काम शरु थयुं त्यारे आ काम तरफ कांईक उपेक्षा पण आवी. पण एं जवाबदारीनेा भार मन उपर सतत रह्या करतो हतो एटले तेनेा केटलोक अंश तो में तैयार कर्यो पण पाछलथी अवशिष्ट भागनु ख़ुदी व्यक्तिओने सोंप पढ तेना पाठांतरो कोईए लीधा, तो टिप्पणो वही बीजाए कर्या तो मुक पाठांत पाटणवासी पं. अमृतलाल मोहनलाले सीमा टिप्पणो पं. मदेचरदासजीए तैयार कर्या, बाकी
यु एटले मारी तो एमो उपलक दृहिनी नजर ज रही शकी छे.
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आ रीते आ बीजा भागना संपादन काम अनेक हाये तैयार अथवा एने माटे मने प्रसन्नता के के विवाद छे एक व्यक्त करी बीजा मागने वाचको समक्ष रज् करी संतोष अनुभवाना प्रयत्न करू .
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यथेली रसोई जेवु छे, वे स्वादिष्ट छे के अस्वादिष्ट छेशकतो नथी, तो पण भाटलां वर्षो पछीय प्रस्तुत मंचना
काम एक पछी एक जुदी
रिडींग बली श्रीभार क",
काम पं. भंगालाल शा
आ संपादन मारी स्वीकारेली जवाबदारी छे तेने मारा ढंगे पूरी रीते अश नथी करी शक्यो ए माटे सद्गतना क्षमाप्रार्थी छु.
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मुनि पुण्यविजय, ( सं. २००६)
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