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न्यायसंग्रह (हिन्दी विवरण) "तृन्पत्-तृम्पति' । 'श' होने पर 'न' लोप नहीं होता है-'तृम्पति, तृम्पन्ती' ॥१६१॥
'स्तुप, स्तूपण समुच्छाये' । 'स्तोपयति' । यह धातु षोपदेश नहीं है, अतः सन्नन्त प्रयोग में 'ष' नहीं होगा और 'तुस्तोपयिषति' रूप होगा । अद्यतनी में 'अतुस्तुपत्' रूप होता है, किन्तु षोपदेश 'ष्टपण्' धातु के 'स्तुपयति, तुष्टुपयिषति, अतुष्टुपत्' इत्यादि रूप होते हैं । ॥१६२॥
"स्तूपण', यह धातु षोपदेश नहीं है, अतः सन् होने पर तुस्तूपयिषति' रूप होगा और अद्यतनी में 'ङ' होने पर 'उपान्त्यस्या'-४/२/३५ से ह्रस्व होने पर 'अतुस्तुपत्' रूप होगा । जबकि 'स्तूपयति' इत्यादि रूप 'ष्ट्रपण्' धातु के भी होते हैं । ॥१६३॥
'तुपुण अर्दने' । यह धातु 'उदित्' होने से 'न' का आगम होने पर 'तुम्पयति' इत्यादि रूप होते हैं । कर्मणि का 'क्य' प्रत्यय( कित्) होने पर 'न' लोप नहीं होगा और 'तुम्यते' इत्यादि रूप होते हैं। जबकि भ्वादि गण के 'तुम्प' धातु के 'न' का 'नो व्यञ्जनस्या'-४/२/४५ से लोप होकर 'तुप्यते' रूप होता है। ॥१६४॥
ब अन्तवाले तेरह धातु हैं । 'घर्ब, कन्ब, खन्ब, गन्ब, चन्ब, तन्ब, नन्ब, पन्ब, बन्ब, शन्ब, षन्ब गतौ । 'घर्बति, घर्बित:' । यह धातु क्त होने पर सेट होने से 'क्तेटो गुरो:'-५/३/१०६ सूत्र से 'अ' प्रत्यय होने पर घर्बा' प्रयोग होता है । ऐसा आगे भी ज्ञातव्य है । ॥१६५॥
'कन्ब' धातु का 'कम्बति' रूप होता है । कित् प्रत्यय होने से 'न' का लोप होने पर कर्मणि प्रयोग में 'कब्यते' रूप होता है । 'कम्बितः, कम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१६६॥
'खन्ब' धातु के 'खम्बति, खब्यते, खम्बितः, खम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१६७॥ 'गम्ब' धातु के 'गम्बति, गब्यते, गम्बितः, गम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१६८॥ 'चन्ब' धातु के 'चम्बति, चब्यते, चम्बितः, चम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१६९॥ 'तन्ब' धातु के 'तम्बति, तब्यते, तम्बितः, तम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१७०॥
'नम्ब' धातु णोपदेश नहीं है अतः 'प्रनम्बति' इत्यादि में 'न' का 'ण' नहीं होता है और 'नब्यते, नम्बितः, नम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१७१॥ ।
'पन्न' धातु के 'पम्बति, पब्यते, पम्बितः, पम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१७२॥ 'बन्ब' धातु के 'बम्बति, बब्यते, बम्बितः, बम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१७३॥
'शन्ब' धातु के 'शम्बति, शब्यते, शम्बितः, शम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । 'णिग्' होने पर या चुरादि आकृति गण होने से 'णिच्' होने पर 'शम्बयति' रूप होता है । ॥१७४॥
स्वो. न्या.-: फ अन्तवाले तृफ और तृम्फत् धातु को अन्य वैयाकरण प अन्तवाले मानते हैं। 'ष्टूपण समुच्छ्राये' धातु को ही कुछेक 'स्तुपण' के रूप में मानते हैं, तो अन्य उसी धातु को ही अषोपदेश 'स्तूपण' के रूप में मानते हैं । 'तुबुण् अर्दने' धातु जैसा ही 'तुपुण्' धातु है । जैसे 'अर्ब, कर्ब' इत्यादि धातु जैसे गत्यर्थक हैं, वैसे धर्ब धातु भी गत्यर्थक है, ऐसा कुछेक मानते हैं । कौशिक परम्परा में 'कर्ब, खर्ब' इत्यादि के रेफ के स्थान में न कार माना गया है।
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