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________________ ४०२ न्यायसंग्रह (हिन्दी विवरण) "तृन्पत्-तृम्पति' । 'श' होने पर 'न' लोप नहीं होता है-'तृम्पति, तृम्पन्ती' ॥१६१॥ 'स्तुप, स्तूपण समुच्छाये' । 'स्तोपयति' । यह धातु षोपदेश नहीं है, अतः सन्नन्त प्रयोग में 'ष' नहीं होगा और 'तुस्तोपयिषति' रूप होगा । अद्यतनी में 'अतुस्तुपत्' रूप होता है, किन्तु षोपदेश 'ष्टपण्' धातु के 'स्तुपयति, तुष्टुपयिषति, अतुष्टुपत्' इत्यादि रूप होते हैं । ॥१६२॥ "स्तूपण', यह धातु षोपदेश नहीं है, अतः सन् होने पर तुस्तूपयिषति' रूप होगा और अद्यतनी में 'ङ' होने पर 'उपान्त्यस्या'-४/२/३५ से ह्रस्व होने पर 'अतुस्तुपत्' रूप होगा । जबकि 'स्तूपयति' इत्यादि रूप 'ष्ट्रपण्' धातु के भी होते हैं । ॥१६३॥ 'तुपुण अर्दने' । यह धातु 'उदित्' होने से 'न' का आगम होने पर 'तुम्पयति' इत्यादि रूप होते हैं । कर्मणि का 'क्य' प्रत्यय( कित्) होने पर 'न' लोप नहीं होगा और 'तुम्यते' इत्यादि रूप होते हैं। जबकि भ्वादि गण के 'तुम्प' धातु के 'न' का 'नो व्यञ्जनस्या'-४/२/४५ से लोप होकर 'तुप्यते' रूप होता है। ॥१६४॥ ब अन्तवाले तेरह धातु हैं । 'घर्ब, कन्ब, खन्ब, गन्ब, चन्ब, तन्ब, नन्ब, पन्ब, बन्ब, शन्ब, षन्ब गतौ । 'घर्बति, घर्बित:' । यह धातु क्त होने पर सेट होने से 'क्तेटो गुरो:'-५/३/१०६ सूत्र से 'अ' प्रत्यय होने पर घर्बा' प्रयोग होता है । ऐसा आगे भी ज्ञातव्य है । ॥१६५॥ 'कन्ब' धातु का 'कम्बति' रूप होता है । कित् प्रत्यय होने से 'न' का लोप होने पर कर्मणि प्रयोग में 'कब्यते' रूप होता है । 'कम्बितः, कम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१६६॥ 'खन्ब' धातु के 'खम्बति, खब्यते, खम्बितः, खम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१६७॥ 'गम्ब' धातु के 'गम्बति, गब्यते, गम्बितः, गम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१६८॥ 'चन्ब' धातु के 'चम्बति, चब्यते, चम्बितः, चम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१६९॥ 'तन्ब' धातु के 'तम्बति, तब्यते, तम्बितः, तम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१७०॥ 'नम्ब' धातु णोपदेश नहीं है अतः 'प्रनम्बति' इत्यादि में 'न' का 'ण' नहीं होता है और 'नब्यते, नम्बितः, नम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१७१॥ । 'पन्न' धातु के 'पम्बति, पब्यते, पम्बितः, पम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१७२॥ 'बन्ब' धातु के 'बम्बति, बब्यते, बम्बितः, बम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । ॥१७३॥ 'शन्ब' धातु के 'शम्बति, शब्यते, शम्बितः, शम्बा' इत्यादि प्रयोग होते हैं । 'णिग्' होने पर या चुरादि आकृति गण होने से 'णिच्' होने पर 'शम्बयति' रूप होता है । ॥१७४॥ स्वो. न्या.-: फ अन्तवाले तृफ और तृम्फत् धातु को अन्य वैयाकरण प अन्तवाले मानते हैं। 'ष्टूपण समुच्छ्राये' धातु को ही कुछेक 'स्तुपण' के रूप में मानते हैं, तो अन्य उसी धातु को ही अषोपदेश 'स्तूपण' के रूप में मानते हैं । 'तुबुण् अर्दने' धातु जैसा ही 'तुपुण्' धातु है । जैसे 'अर्ब, कर्ब' इत्यादि धातु जैसे गत्यर्थक हैं, वैसे धर्ब धातु भी गत्यर्थक है, ऐसा कुछेक मानते हैं । कौशिक परम्परा में 'कर्ब, खर्ब' इत्यादि के रेफ के स्थान में न कार माना गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001446
Book TitleNyayasangrah
Original Sutra AuthorHemhans Gani
AuthorNandighoshvijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages470
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Nyay
File Size11 MB
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