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________________ [37] अन्तरङ्गं बहिरङ्गात् (१-४२), निरवकाशं सावकाशात् (१-४३), वार्णात्प्राकृतम् (१-४४) य्वद् य्वृदाश्रयं च (१-४५), उपपदविभक्तेः कारकविभक्तिः (१-४६), लुबन्तरङ्गेभ्यः (१-४७) सर्वेभ्यो लोपः (१-४८), लोपात्स्वरादेशः (१-४९), आदेशादागमः (१-५०), आगमात्सर्वादेशः (१-५१), नित्यादन्तरङ्गम् (१-५३), अन्तरङ्गाच्चानवकाशम् (१-५४), उत्सर्गादपवादः (१-५५) अपवादात्क्वचिदुत्सर्गोऽपि (१-५६), श्रुतानुमितयोः श्रौतो विधिबलीयान् (२-२१) परादन्तरङ्ग बलीयः (३-८) स्पर्धा में बलवत्त्व का कारण मुख्य रूप से चार बताये हुए हैं। १. परत्व, २. नित्यत्व, ३. अन्तरङ्गत्व, ४. अपवादत्व । इन्हीं चार कारणों के आधार पर विभिन्न व्याकरण परम्परा में प्रायः कुल मिलाकर ६० से अधिक परिभाषाएँ बतायी गई हैं । उसमें से पुरुषोत्तमदेव ने अपनी परिभाषावृत्ति में २२ परिभाषाएँ दी है, तो नागेश ने उसमें अन्य ग्यारह परिभाषाएँ मिलाकर कुल ३३ परिभाषाएँ परिभाषेन्दुशेखर में दी है। कहीं कहीं 'स्पर्धे' ७/४/११९ 'परान्नित्यम्, नित्यादन्तरङ्गम्, अन्तरङ्गाच्चानवकाशम्'ये चारों न्याय एक साथ एक ही न्याय में बताये गए हैं, वह इस प्रकार है - 'पूर्वपरनित्यान्तरङ्गापवादानामुत्तरोत्तरं बलीयः ।'६५ १७. अपवादविधि का बलवत्त्व -: व्याकरणशास्त्र में निर्दिष्ट कुछेक विधियाँ सामान्य होती हैं, जिसे उत्सर्गविधि कही जाती है, जबकि कुछेक विधियाँ विशेष होती हैं, जिसे अपवादविधि कही जाती है। सामान्यतया सामान्यविधि से विशेषविधि बलवान् होती है अत: उत्सर्गविधि से अपवादविधि बलवान् ही होती है, किन्तु अपवादविधि सब से बलवान् होती है और वह 'पूर्वपरनित्यान्तरङ्गापवादानामुत्तरोत्तरं बलीयः' और उसके समानार्थक न्यायों से सिद्ध ही है। सामान्यतया पहले उत्सर्ग या सामान्यविधि बतायी जाती है, बाद में अपवाद या विशेषविधि बतायी जाती है, किन्त व्याकरण के सत्रों में कभी कभी ये अपवादविधियाँ, उत्सर्गविधि से पर्व या उत्सर भी बतायी जाती है। ऐसी परिस्थिति में वही अपवादविधि किसका बाध करें? पूर्वसूत्र निर्दिष्टविधि का या परसूत्र निर्दिष्टविधि का ? यदि परसूत्र निर्दिष्टविधि का बाध करती हो तो उसमें अनन्तरोक्त विधि का बाध करें या परम्परोक्त विधि अर्थात् अन्यविधि से व्यवहित विधि का बाध करें ? उसका निर्णय निम्नोक्त दो न्यायों से होता है। १. पूर्वेऽपवादा अनन्तरान् विधीन् बाधन्ते नोत्तरान् ॥३६॥ उत्सर्गशास्त्र से पूर्व में कहे गये अपवादशास्त्र , उसके बाद तुरंत आये हुए सूत्र निर्दिष्ट उत्सर्गविधि का बाध होता है, किन्तु परम्परोक्त विधि का बाध नहीं होता है। २. मध्येऽपवादाः पूर्वान् विधीन् बाधन्ते नोत्तरान् ॥३७॥ उत्सर्गशास्त्र के बीच में कहे गये अपवादशास्त्र हे गये, उत्सर्गशास्त्र का बाध होता है किन्तु बाद में कहे जानेवाले उत्सर्गशास्त्र का बाध नहीं होता है। वैसे उत्सर्गशास्त्र के अन्त में/बाद में कहे गये अपवादशास्त्र से प्रायः पूर्वोक्त संपूर्ण उत्सर्गशास्त्र का बाध होता है। उत्सर्गशास्त्र बाध्य है, तो अपवादशास्त्र बाधक है । तो बाध्य कौन होता है या हो सकता है ? या नहीं 58. The different paribhāsās or maxims, which are laid down by grammarions in connection with these four factors, number more than 60. out of which Purusottamdeva selected only 22 to which Nagesa has added 11 and has given 33 maxims, which form the second part of the Paribhāsendusekhara (Introduction, Paribhāsāsamgraha by Prof. K. V. Abhyankara) द्रष्टव्य : परिभाषासंग्रह-तालिका, पृ. ४८०, क्र. नं. २९२, २९६, ३१६ 59. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001446
Book TitleNyayasangrah
Original Sutra AuthorHemhans Gani
AuthorNandighoshvijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages470
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Nyay
File Size11 MB
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