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न्यायसंग्रह (हिन्दी विवरण )
इसके बारे में इतना ही कहना है कि प्रथम वक्षस्कार/विभाग के ५७ न्यायों को छोड़कर इसी द्वितीय खंड के ६५ न्याय और तृतीय खंड के १८ न्याय श्रीहेमहंसगणि ने बृहद्वृत्ति - लघुन्यास इत्यादि में से चयन किये हुए हैं । अतः इन न्यायों का स्पष्ट उल्लेख शायद बृहद्वृत्ति या बृहन्यास इत्यादि में भी न पाया जाता हो । अतः इस ज्ञापक से इतना ही सिद्ध होता है कि व्याकरणशास्त्र में भी लोकप्रसिद्ध 'एक' शब्द के अन्य विविध अर्थो का स्वीकार किया गया है ।
यह न्याय भी अन्य किसी भी परिभाषासंग्रह में नहीं है ।
॥ ९१॥ आदशभ्यः सङ्ख्या सङ्ख्येये वर्तते, न सङ्ख्याने ॥ ३४॥
'दशन् ' पर्यन्त सङ्ख्या, सङ्ख्येय के रूप में होती है, किन्तु संख्यान के रूप में मानी जाती नहीं है ।
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यहाँ 'आदशभ्यः' शब्द से केवल 'दशन्' तक नहीं किन्तु 'अष्टादश' तक की संख्या लेना क्योंकि 'दशन्' शब्द का प्रयोग 'अष्टादश' तक होता है और 'आदशभ्यः ' शब्द का अर्थ 'दशन् शब्द प्रयोगावधि' किया गया है । अतः 'अष्टादश' पर्यन्त की संख्या, संख्येय अर्थात् विशेष्य के साथ सामानाधिकरण्य अर्थात् समान वचन और विभक्ति में प्रयुक्त होती है। उदा. 'एको घटः द्वौ घटौ, त्रयो वा ....यावत् अष्टादश घटाः' प्रयोग होता है किन्तु 'घटानां एको वा, द्वौ वा त्रयो वा ... ' प्रयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि 'एक' से 'अष्टादश' पर्यन्त संख्या का संख्यान अर्थात् विशेष्य के रूप में प्रयोग नहीं होता है किन्तु विशेषण के रूप में ही प्रयोग होता है। जबकि 'एकोनविंशतिः' शब्द से लेकर सभी संख्यावाचक शब्द 'सङ्ख्येय' के रूप में तो हैं ही, किन्तु 'सङ्ख्यान' के रूप में भी उनका प्रयोग होता है | उदा. 'एकोनविंशतिर्घटाः' तथा 'घटानां एकोनविंशतिः', वैसे 'नवनवतिर्घटाः घटानां वा' । 'शतं, सहस्त्रं, लक्षं, कोटिर्वा घटा: ' तथा 'शतं, सहस्त्रं लक्षं, कोटिर्वा घटानाम् ' प्रयोग भी होता है ।
इस न्याय का ज्ञापन 'सुज्वार्थे सङ्ख्या सङ्ख्येये सङ्ख्यया बहुव्रीहि:' ३/१/१९ सूत्रगत 'सङ्ख्येय' शब्द से होता है ।
यदि यह न्याय न होता तो कौन-सी संख्या 'सङ्ख्येय' के रूप में है वह कैसे मालूम देता? और उसका ज्ञान न हो तो 'सङ्ख्यान' स्वरूप संख्या का भी ज्ञान न होता और उसका परिहार किये बिना 'सङ्ख्येय' रूप संख्या के साथ कैसे समास होगा ? और यही ज्ञापक 'आदशभ्यः' पद को छोडकर, शेष संख्या के लिए है अर्थात् संख्येय के रूप में किसी भी संख्या है, इतना ही अर्थ इसी 'सुज्वार्थे सङ्ख्या'३/१/१९ सूत्र से ध्वनित होता है ।
यह न्याय अनित्य होने से 'आसन्नादूरा' - ३/१/२० से हुए 'आसन्नदशन्' समास से 'प्रमाणी सङ्ख्याडु: '७/३/१२८ से 'ड' समासान्त होगा और 'आसन्नदशा' होगा। उसी समास का अर्थ 'नव' अथवा 'एकादश' होता है 'आसन्ना - दश' में 'दश' का अर्थ 'दश सङ्ख्या येषां' ऐसा व्यधिकरण बहुव्रीहि समास होता है ।
यह न्याय भी अन्य किसी भी परिभाषापाठ में प्राप्त नहीं है।
इस न्याय में प्रयुक्त 'आदशभ्यः' शब्द के दो अर्थ होते हैं । 'दशन्' शब्द तक और 'दशन् '
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