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________________ रस तथा अलंकार। ग्रीष्म में सब प्राणियों की देह तो गर्मी से जलती है पर वह गर्मी गधे की देह को कष्ट पहुँचाने में असमर्थ है।' इन नौ रसों के अतिरिक्त दसवां वात्सल्य रस भी काव्य में वर्तमान है । एक मां अपने सजे धजे पुत्र को देखती है, हर्ष से फूली नहीं समाती, बच्चे को हाथों में उठाती है और प्रेम में गद्गद् हो अपने हृदय से लगाती और मुख चूमती है।' महाकाव्य की परिपाटी के अनुसार पासणाहचरिउ में अलंकारों का बाहुल्य है । उपमा तो यत्र तत्र सर्वत्र वर्तमान है पर उसमें विशेष उल्लेखनीय मालोपमा है। रविकीर्ति के वर्णन के समय उनके भिन्न गुणों के कारण उसे मंदरपर्वत, सागर आदि तेरह उपमानों के तुल्य बताया गया है। काव्य के सदिय को अत्यधिक विकसित करने के लिए इस काव्य में अनेक अनूठी उत्प्रेक्षाओं का उपयोग हुआ है। एक नगर के ऊँचे धवलप्रासादों में कवि पृथिवी के स्तन होने की संभावना प्रगट करता है जिनके द्वारा पृथिवी माता अपने पुत्र सूर्य को स्तन्यापान कराने की इच्छुक है। यवनराज के नौ पुत्र युद्ध में उतरे तो कविने संभावना की कि मानो वे नौ ग्रह ही धनुषबाण हाथ में लेकर युद्ध करने आए हों । वसंत में जब शुक आम्रमञ्जरी अपनी चोंच में दबाकर उडने लगे तो कवि कल्पना करता है मानों वे वसंतनरेन्द्र के आज्ञापत्र को घुमा रहे हों। इसके साथ ही मालोत्प्रेक्षा के उदाहरण भी ग्रन्थ में वर्तमान हैं। नभतल में जब असुरेन्द्र का विमान रुक गया तो उसके संबन्ध में कविने १७ संभावनाएं व्यक्त की हैं। मानों वह रथ पिशाच हो जो विद्या से स्थगित हो गया हो, मानो वह पुद्गलद्रव्य हो जो जीव के उड जाने से स्थगित हो गया हो आदि । उसी प्रकार से जब मेघजाल गगन में बढ़ने लगा तो कवि उसका वर्णन सोलह कल्पनाओ के आश्रय से करता है मानो दुश्चारित्र व्यक्तियों का अपयश बढ़ रहा हो, मानो खल व्यक्ति के हृदय में कालुष्य बढ़ रहा हो, मानो दुष्ट में दुष्टता बढ़ रही हो मानो सर्प के शरीर में विष बढ़ रहा हो आदि। इनके अतिरिक्त काव्य में अत्यधिक चारुता लानेवाला अलङ्कार अर्थांतरन्यास है। इस का उपयोग ग्रन्थ में सब परिस्थितियों में सुन्दर ढंग से किया गया है । एक सामान्य या विशेष कथन की पुष्टि जब विशेष या समान्य से की जाती है तब इस अलंकार की छटा उभरती है जैसे-जब रवि अस्ताचलगामी हुआ तो किरणजाल भी उसे छोड गया, सत्य है आपत्ति के समय आत्मज भी सहायता नहीं करने । इस अलंकार के अनेक उदाहरण भाषाशैली की चर्चा के प्रसङ्ग में दिए ही जा चुके हैं। व्यतिरेक अलंकार का उपयोग राजा के वर्णन में हुआ है। कवि राजा की तुलना रवि, शशि, सागर, कुबेर, कामदेव आदि नौ उपमानों से करना चाहता है पर उन सब उपमानों में कोई न कोई दोष है। वे राजा की अपेक्षाहीन है। राजा की तुलना उनसे नहीं की जा सकती फलतः कवि को अनन्वय अलंकार की शरण लेना पड़ती है।" उक्त अलंकारो के अतिरिक्त कवि द्वारा प्रयुक्त दृष्टांत', संदेहे', तुच्ययोगितौ और व्याजस्तुति" अलंकार विशेष उल्लेखनीय हैं। पा. च.के छंद [१] कवि ने अपने काव्य को १८ संधियों में विभक्त किया है । संधि पुनः कडवकों में किया है। प्रत्येक संधि के कडवकों की संख्या भिन्न भिन्न है। सबसे अधिक कडवकों की संख्या चौदहवीं संधि में हैं। जहां उनकी संख्या तीस है। सबसे छोटी संधियां चौथी, पांचवीं तथा पन्द्रहवीं हैं, जिनके कडवकों की संख्या बारह बारह है। समूचे ग्रन्थ में कडवकों की संख्या ३१५ है। कडवक का कलेवर पंक्तियों से बना है। एक कडवक में कितनी पंक्तियां हो यह निश्चित नहीं फिर भी उसमें प्रायः दस से बारह तक पंक्तियां रहती हैं। पूरे ग्रन्थ में पंक्तियों की संख्या लगभग ३६४० है। इन १. वही ६. १०. १२. २. पा. च ९. १. ३-१. ३. पा. च. ११. ६. ४. पा. च. १.७.९-१०. ५. पा. च. ११. ९. ५. ६.. पा, च.१३. ४. १०-११. ७. पा.च १४. ५.८ पा. च. १४.२१. ९. पा. च. १०.८. १. २.१०. पा. च. ५... ६-१४. ११. पा. च. १.३. ७.१२. वही १२. २. १२.१३. वही १२. २. १२.१४. वही १. ६. ८. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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