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________________ प्रकृति वर्णन (२) पा. च. में प्रकृति वर्णन : प्रकृति वर्णन में सूर्यास्त, संध्या तथा चन्द्रोदय एवं ऋतुवर्णन उल्लेखन य हैं। पद्मकीर्ति ने सूर्यास्त तथा संध्यागम में मानवीय गतिविधि की तारतम्यता को देखा है । सूर्य को उसने एक मानव के रूप में उपस्थित कर उसके ही द्वारा उसकी तीन अवस्थाओं का वर्णन करा कर उससे मानव को पाठ-ग्रहण करने का उपदेश दिलाया है। सूर्य का कथन है कि प्रत्येक मनुष्य की तीन अवस्थाएँ-उदय, उत्कर्ष एवं अस्त-होती हैं।' उदय के समय देवता भी उसे प्रणाम करते हैं, उत्कर्ष के समय वह संसार के उपर छाकर उसका भला करने का प्रयत्न करता है पर जब उसके अस्तसमय आता है तब सहोदर भी उसकी सहायता को नहीं आते। जो साथ थे वे भी साथ छोड देते हैं । अतः मनुष्य को अस्त के समय दुःखी होने की आवश्यकता नहीं । उसे तो केवल इस कारण से संतोष होना चाहिए कि उसने अपना कार्य पूरा किया है । संध्याका वर्णन एक रूपक के अवलम्ब से किया गया है। संध्या को एक नयिका का परिधान पहनाया गया है और सूर्य रूपी नायक को एक अनुरक्त प्रेमी का । यह नायक अनुरक्त होते हुए की तब तक नायिका के समीप नहीं जाता जब तक कि अपना कार्य पूरा नहीं कर लेता। सच है कि जो महान व्यक्ति होते हैं वे अपना कार्य सम्पन्न कर ही महिलाओं के पास जाते हैं । वे महिलाओं का सान्निध्य तभी प्राप्त करते हैं जब वे दूसरों की आंखों से ओझल हो जाते हैं दूसरी ओर संध्या है जो निर्मल, स्निग्ध और प्रिय के आकर्षण योग्य श्रृंगार से युक्त होते हुए भी प्रिय को आकर्षित नहीं कर पाती, वह विरह का ही अनुभव करती है। किन्तु तथापि वह सूर्य-नायक की अनुगामिनी बनी है। सच ही तो है कि चंचलरूप धारण करनेवाली नारी के अधिकार में मनुष्य के पास पहुँचने का कोई दूसरा साधन भी तो नहीं है । ग्रन्थ में थोड़े शब्दों में संध्या का बहुत सजीव चित्र प्रस्तुत किया गया है। संध्या निर्मल स्निग्ध और अनेकानेक रंगों से रञ्जित है। उसकी छवि किंशुक और प्रवाल के समान है । उसकी देह सिंदूर पुञ्ज के अनुरूप है तथा उसका मुख ईषदरक्त है । सूर्य और संध्यारूपो अनुरक्त प्रेमी-युगल के विदा हो जाने के पश्चात् आकाशमंडल का स्वामित्व मदनराज के सहायक निशानायक चन्द्र को प्राप्त हो जाता है । यह चन्द्र कालिमायुक्त रात्रि को भी धवलिमा से युक्त कर उसे शोभनीय बना देता है । सत्य ही तो है कि सत्पुरुष की संगति में दोषवती नारी भी शोभा देने लगती है। इस प्रकार चन्द्रोदय के वर्णन में भी ग्रन्थ में प्रकृति ओर मानवीय क्रियाओं में सामञ्जस्य स्थापित किया है। चन्द्र के कलंक को देखकर कवि आश्चर्य करता है कि समस्त संसार को शुभ्रता प्रदान करनेवाला चन्द्र अपने शरीर के एक भाग में वर्तमान श्यामलता को क्यों दूर नहीं कर पाता। पर इसमें आश्चर्य की क्या बात है; सभी जानते हैं कि विद्वान् परोपकार की चिन्ता में स्वयं को भूल जाते हैं।' ऋतुओं में ग्रीष्म, वर्षा तथा हेमन्त का वर्णन किया गया है । ऋतुओं का यह वर्णन वास्तविक है, उसमें कल्पना की उडान अधिक नहीं, न हि प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण । इन वर्णनों में कवि का ध्यान प्रकृति के सामान्य, स्थूल एवं भीषणरूप की ओर अधिक गया है अतः वसन्त को छोड़ शेष सब ऋतुएं जन-साधारण के लिए दुखदाई हैं। ग्रीष्म ऋतु दुस्सह ओर कठोर है जिसमें अग्नि के समान घाँय घाँय करता हुआ तीक्ष्ण ओर चपल वातूलयुक्त पवन बहता है । वह संसार को प्रलयाग्नि के समान तपाता है उसी प्रकार से जिस प्रकार से कि दुष्ट नृप मनुष्यों को संतप्त करता है। इस कारण से मनुष्य दिन में म्लान रहते हैं और रात्रि में करवटें बदलते हैं। ग्रीष्म के पश्चात् नभ में जब घनरूपी हाथी आते हैं तो वर्षाकालरूपी राजा उनपर आरूढ हो जाता है और अपनी विद्युतरूपी तलवार चमकाता है। उस समय ध्वनि से प्रचण्ड, विधुत से चंचल, ओर काले तमालवन के समान श्यामल मेघ पानी की झड़ी लगा देते हैं । इनके कारण अंधकार इतना बढ़ १. पा. च. १.. ८. ८. २ पा. च. १०. ९. २-५. ३. पा. च. ११. ११. १०, ११ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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