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________________ १०७ टिप्पणियाँ [२२६ १. सौधर्म ३२००००० २. ईशान २८००००० ३. सानत्कुमार १२००००० ४.माहेन्द्र ८००००० ५. ब्रह्म तथा ब्रह्मोत्तर ४००००० ६. लान्तव तथा कापिष्ट ५०००० ७. शुक्र तथा महाशुक्र ४०००० ८. शतार तथा सहस्रार ६००० ९. आनत, प्राणत, रण ७०० तथा अच्युत १०. अधस्तन |वेयकों १११ १२. मध्यम १३. उपरिम ९१ १४. अनुदिशों १५. अनुत्तरों योग ८४९७०२३ (चौरासी लाख सत्तानवे हजार तेईस) १६.६.१ यहाँ भिन्न-भिन्न कल्पोंके देवोंकी जो आयु दी गयी है वह उनकी उत्कृष्ट आयु है। सौधर्म-ईशान कल्पोंके देवोंकी जघन्य आयु एक पल्य तथा उत्कृष्ट आयु दो सागर है । सानत्कुमार-माहेन्द्र कल्पोंके देवोंकी जघन्य आयु सौधर्मईशान कल्पोंके देवोंकी उत्कृष्ट आयुके बराबर अर्थात् दो सागर होती है। ऐसा ही क्रम आगे-आगेके कल्पोंके देवोंकी आयुका है। सर्वार्थसिद्धि के देवोंकी जघन्य तथा उत्कृष्ट आयु समान है। १६.६.८ सुरविलयहं 'माणु-सौधर्मकल्पमें देवियोंकी जघन्य आयु पल्यसे कुछ अधिक तथा उत्कृष्ट आयु पाँच पल्योपम होती है। सौधर्मसे ग्यारहवें कल्पतक देवियोंकी आयुमें दो-दो पल्यकी वृद्धि होती जाती है। उसके बादके चार कल्पों तक सात-सात पल्योंकी वृद्धि होती है । अन्तिम कल्पकी देवियोंकी आयु ५५ पल्योपम होती है। १६.७.२. यहाँ जिस दूरीका उल्लेख किया गया है वह चित्रा पृथिवीके उपरिम तलसे ऊपरकी ओरका है (ति. प. ७.१०८)। १६.७.३. ज्योतिष्क देवोंकी चित्रा पृथिवीसे दूरीके लिए भूमिका देखिए। १६.७.७. असुरमंति-जिसक्रमसे यहाँ ग्रहोंकी स्थिति बतलाई है उससे प्रतीत होता है कि शुक्र ग्रह मङ्गलके ऊपर स्थित है। यह संशयास्पद है क्योंकि ति. प. में मंगलको शुक्रके ऊपर स्थित बताया है (देखिये ति० प.७.८९,६६ तथा त.सू.४. १२ पर रा. वा. पृ० २१९)। यथार्थमें मंगल बृहस्पतिके भी ऊपर स्थित है। १६.७.११. जीवहो 'पल्लें-यहाँ जीव (बृहस्पति) की आयु सौ वर्ष अधिक एक पल्य बताई गयी है । ति. प. (७.६१४) के अनुसार जीवकी आयु केवल एक पल्यकी है। (ग्रहोंकी आयुके सम्बन्धमें भूमिका भी देखिए)। १६.८.२,३–ति.प. (६. २५) में व्यन्तरोंके ये आठ भेद बताये हैं-किन्नर', किं पुरुष. महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत तथा पिशाच । इनमेंसे प्रथम चारके पुनः दस,दस यक्षके बारह, राक्षस तथा भूत के सात-सात तथा पिशाचके चौदह प्रभेद हैं (ति. प. ६. ३२ से ४८)। १६.८.४ सवेल-वैलाभिः सहिताः सवेलाः। वेलन्धरका विशेषण है। -वेलन्धर-ये व्यन्तर देव लवण समुद्रके तटपर रत्नवेदिकासे ४२ हजार योजन तिरछे जानेपर चारों दिशाओं तथा आभ्यन्तर वेदोसे सात-सौ योजन ऊपर जो नगर हैं उनमें निवास करते हैं। इनकी ऊँचाई दस धनुष तथा आयु एक पल्य होती है। चूंकि ये देव आभ्यन्तरवेला, बाह्यवेला तथा अग्रोदकको धारण करते हैं अतः इनका नाम वेलन्धर है (त. सू. ३.३ पर रा. वा. पृ. १. १९४)। १६.८.७ इतरुवरगेहहि-नद्यश्च तरुवरश्च नदीतरुवराः। नदीतरुवराः एव गृहाणि, नदीतरुवरैः वेष्टितानि गृहाणि वा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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