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________________ ४४ प्रस्तावना (७) अंगुत्तरनिकाय में यह उल्लेख है कि वप्प नाम का एक शाक्य निर्ग्रन्थों का श्रावक था । इसी सुत्त की अटूकथा में यह निर्देशित है कि यह वप्प बुद्ध का काका था । इससे भी भगवान् महावीर के पूर्व निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय का अस्तित्व सिद्ध होता है । ( ८ ) जैन परंपरा से यह स्पष्ट है कि अंतिम तीर्थंकर अपने धर्म के प्रवर्तक नहीं थे वे केवल एक सुधारक थे। उनके पूर्व २३ तीर्थकर हुए थे । इनमें से २२ तीर्थकरों के संबंध में कुछ ऐसी असंभव वातें जुड़ गई हैं जिससे उनकी ऐतिहा सिकता ही संशय में है । उन असंभव बातों में उनकी आयु कुमारकाल, और तीर्थ यहां उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किए जा सकते हैं । यह अवधि लाखों और करोडों की संख्या में बताई गई है । किन्तु इन मुद्दों पर पार्श्वनाथ के विषय में जो सूचना प्राप्त है वह इसके विपरीत संयत प्रमाण में है । पार्श्वनाथ की आयु १०० वर्ष, कुमारकाल ३० वर्ष तथा उनके तीर्थ की अवधि केवल २५० वर्ष की है। इनमें से कोई भी अवधि इस प्रकार की नहीं जो असंभव और फलतः ऐतिहासिकता की दृष्टि से संदेह उत्पन्न करे । उपर्युक्त प्रमाणों से यह निर्विवाद सिद्ध हो जाता है कि जो निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय महावीर के पूर्व वर्तमान था वह चातुर्याम धर्म का पालन करता था । इन चार यामों से युक्त निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय पार्श्व द्वारा प्रवर्तित किया गया था यह निम्नलिखित प्रमाणों से सिद्ध होता है। ( १ ) श्रुतांगों में पासावचिज्जों ( पार्श्वपत्यिकों ) का बहुश: उल्लेख हुआ है। आचारांग में स्पष्ट कथन है की महावीर के माता पिता पासावचिज्ज थे- “ समणस्य णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावचिज्जा समणोवासगा या वि होत्था " । पासावचिज्ज शब्द की व्याख्या इस प्रकार की गइ है- (अ) पार्श्वापत्यस्य पार्श्वस्वामिशिष्यस्य अपत्यं शिष्यः पार्श्वापत्यीयैः । (आ) पार्श्वजिनशिष्याणामयं पार्श्वापत्ययः । (इ) पार्श्वनाथशिष्यशिष्यैः । तथा (ई) चातुर्यामिक सौंधौ । पासावचिज्ज (पार्श्वापत्यीय ) शब्द की उक्त व्याख्याओं पर से दो निष्कर्ष निकाले जा सकते है- ( अ ) पार्श्वापत्योय भगवान् पार्श्वनाथ के अनुयायी थे, तथा ( आ ) वे चार यामों का पालन करते हैं । (२) उत्तराध्ययन के २३ वें अध्ययन में केशी ने गौतम से जो पहला प्रश्न किया वह इन शब्दों में थाचाउनामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ । देसिओ वड्ढमाणेण पासेण य महामुनी || (हे महामुनि चातुर्याम धर्म का उपदेश पार्श्व ने किया और पंचशिक्षा धर्म का उपदेश वर्धमान ने किया .... । ) इससे स्पष्ट है कि चातुर्याम धर्म के उपदेष्टा पार्श्वनाथ थे । पार्श्वनाथ के उपदेश का यथार्थ स्वरूप पार्श्व के पूर्व भारत में धार्मिक स्थिति : पार्श्वनाथ के उपदेश को विशिष्टता को पूर्णरूप से समझने हेतु यह जान लेना आवश्यक है कि उनके समय भारत की धार्मिक स्थिति किस प्रकार की थी । ईसा पूर्व नौवीं दसवीं शताब्दि की धार्मिक स्थिति पर विचार करने के लिए हमें अन्य कोई आधार के अभाव में वैदिक साहित्य की सहायता लेना आवश्यक होता है । ईसा पूर्व नौवीं शताब्दि के पूर्व ही ऋग्वेद के अंतिम मंडल की रचना की जा चुकी थी । इस मण्डल के नासदीय सूक्त, हिरण्यगर्भ सूक्त तथा पुरुषसूक्ते आदि से यह स्पष्ट है कि उस समय बुद्धि Jain Education International १. चतुष्कनिपात वग्ग ५. २. आ. १००६. ३. आ. २.७. ४. भ. सू १९. ५. स्था. ९. ६. भ सू. १५. ७० ऋग्वेद १०. १२९. ८. वही १० १२१. ९. वही १०. ९० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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