SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पार्श्वनाथ का संघ ऋषि पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान की प्राप्ति चैत्र बहुल चतुर्थी के पूर्वाह्न काल में विशाखा नक्षत्र में हुई थी। यह तिथि सब ग्रन्थकारों और दोनों परंपराओं को मान्य है। पार्श्वनाथ का संघ : पद्मकीर्तिने पार्श्व के गणधरों की संख्या का निर्देश नहीं किया किन्तु प्रथम गणघर का नाम स्वयंभू दिया है । स्थानांग में पार्श्व के गणधरों की संख्या तथा नामों का उल्लेख है। कल्पसूत्र में स्थानांग का ही अनुसरण किया गया है। तिलोय पण्णत्ति तथा आवश्यक नियुक्ति में पार्श्व के दस गणधरों का उल्लेख है। यही संख्या समस्त उत्तरवर्ती ग्रन्थकारों को मान्य है। गणधरों के नामों के विषय में ग्रन्थकार एकमत नहीं हैं । तिलोय पण्णति में पार्श्व के प्रथम गणधर का नाम स्वयंभू बताया है किन्तु सिरिपासनाह चरियं में उसका नाम आर्यदत्त दिया है। पद्मकीर्तिने पार्श्वनाथ की प्रथम शिष्या तथा मुख्य आर्यिका का नाम प्रभावती बताया हैं। समवायांग में पार्श्व की प्रथम शिष्या का नाम पुष्पचूला कहा है जब क कल्प सूत्र में पुष्पचला को पार्श्व की मुख्य आर्यिका बताया है। संभवतः दोनों एक हो । तिलोय पण्णत्ति के अनुसार मुख्य आर्यिका का नाम सुलोका था। पार्श्वनाथ के चतुःसंघ में मुनि,आर्यिका, श्रावक, श्राविका आदि की जो संख्या भिन्न ग्रन्थों में निर्दिष्ट है वह निम्नानुसार है: कल्प सूत्र तिलोय पण्णति आवश्यक नियुक्ति १६०० १६०० १६०० पूर्वधर ३५० ३५० शिक्षक १०९०० अवधिज्ञानी १४०० केवली १०००० १०००० विक्रियाधारी ११०. १००० विपुलमतिधारी ७५० ७५० वादि ६०० आर्यिका ३८००० ३८००० ३८००० श्रावक १६५००० १००००० श्राविका ३००००० ३२७००० पार्श्वनाथ का उपदेश : पत्मकीर्ति के अनुसार पार्श्वनाथ ने लोक की उत्पत्ति, लोक के स्वरूप, सुषमासुषमा आदि छह काल तथा त्रेसठ शलाका पुरुषों के नामादि पर प्रकाश डाला। पार्श्वनाथ पर लिखे गए अन्य चरित्र-ग्रन्थों तथा पुराणों में पार्श्व को भिन्न भिन्न उपदेश देते हुए बताया गया है । यथार्थतः इन ग्रन्थों में पार्श्वनाथ द्वारा दिये गए उपदेश प्रचलित जैन मान्यताओं के अनुसार हैं पर उनमें पार्श्व के यथार्थ उपदेश का वैशिष्ट्य नही है । जब कब इन ग्रन्थों में पार्श्व के “ चाउज्जाम धम्म " का उल्लेख अवश्य कर दिया जाता है । इस चाउज्जाम धम्म पर चर्चा आगे की जाएगी। १. स्था. ७८४. २ क. सू. ९६०.३. ति. प. १. ९६३. ४. आ. नि. २९०. ५. गणधरों के नामों के लिए १५. १२.१ पर दी गई टिप्पणी देखिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy