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________________ पार्श्वनाथका वैराग्य तथा दीक्षा • ३९ का विवाह नहीं होने दिया है । देवभद्रसूरि के पश्चात् के सब श्वेताम्बर लेखक उनके ग्रन्थ का अनुकरण करते आए हैं। ___ कुछ अर्वाचीन विद्वानों को पार्श्व के विवाह के संबंध में प्रसेनजित के कारण भ्रम हो गया है । उनका कथन है कि पार्श्व का विवाह अयोध्या के राजा प्रसेनजित की कन्या से हुआ था । यह सर्वथा भ्रामक है इसी प्रकार से रानीगुंफा गुफा में एक भित्ति चित्र में एक पुरुष और स्त्री का तथा पुरुष को बाण चलाते देखकर कुछ विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि यह पार्श्वनाथ के विवाह की घटना का ही चित्र है जब वे यवनराजपर विजयप्राप्त कर प्रभावती को ले गए थे। इस अनुमान के लिए भी कोई आधार नहीं है। पार्श्वनाथ का वैराग्य तथा दीक्षा: पद्मकीर्ति ने कमठ नामक ऋषि के साथ हुई घटना तथा सर्प की मृत्यु को पार्श्व की वैराग्य भावना का कारण बताया है। उत्तर पुराण में उक्त घटना का वर्णन अवश्य किया है पर उसे पार्श्व की वैराग्य भावना का कारण नहीं माना । उत्तर पुराण के अनुसार यह घटना उस समय हुई जब पार्श्व की आयु केवल सोलह वर्ष को थी । घटना के पात्रों के नामादि में भी उत्तरपुराण तथा पा. च. में मतैक्य नहीं है । उत्तर पुराण में पाश्व के वैराग्य भाव का कारण इस प्रकार दिया गया है-पार्श्व जब तीस वर्ष की आयु प्राप्त कर चुके तब अयोध्या के राजा जयसेन द्वारा उनके पास एक भेट दूत के जरिए भेजी गई । पार्श्वनाथ ने जब उस दूत से अयोध्या की विभूति के संबंध में पूछा तो उस दूत ने पहले अयोध्या में उत्पन्न आदि तीर्थकर ऋषभदेव का वर्णन किया और फिर अयोध्या के अन्य समाचार बतलाए । ऋषभदेव के वर्णन से पार्श्व को जातिस्मरण हुआ और वे संसार से विरक्त हो गए । पुष्पदन्त तथा वादिराज ने कमठ के साथ हुई घटना का वर्णन तो किया है पर सर्प की मृत्यु को पार्श्व की वैराग्य भावना का कारण नहीं माना । पुष्पदंतने पार्श्व की वैराग्य भावना का वही कारण दिया है जो उत्तर पुराण में दिया गया है पर वादिराजने उस भावना का कोई कारण नहीं दिया। उन्होंने पार्श्व की स्वभावतः ही संसार से विरक्तप्रवृत्ति बताकर उन्हें दीक्षा की ओर प्रवृत्त किया है। देवभद्रसूरि ने सिरि पासनाहचरियं में कमठ की (जिसे उन्होंने तथा अन्य श्वेताम्बर ग्रन्थकारों ने कमढ कहा है) घटना का वर्णन किया है पर यह नहीं कहा कि उससे पार्श्वनाथ को वैराग्य हुआ । देवभद्रसूरि के अनुसार पार्श्व ने वसन्तसमय में उद्यान में जाकर नेमिनाथ के भित्तिचित्रों का अवलोकन किया जिन्हें देखकर पार्श्व को वैराग्य हो गया । त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित में कमठ की घटना का वर्णन कर पार्श्व में उसी के कारण वैराग्य की उत्पत्ति बताई हैं । इस संबंध में भावदेवसूरी तथा हेमविजयगणि ने देवभद्रसूरी का अनुसरण किया है। दीक्षाकाल :___कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्व ने ३० वर्ष की आयु पूरी होने पर पौष कृष्णा एकादशी को आश्रमपद नामक उद्यान में दीक्षा ग्रहण की थी। दिगम्बर परंपरा के अनुसार पार्श्व ने माघ शुक्ला एकादशी को दीक्षा ली। समवायांग तथा कल्प सूत्र के अनुसार जिस शिबिका में बैठकर पार्श्व नगर के बाहर आए उसका नाम विशाला था । उत्तरपुराणके अनुसार जिस वन में (या उपवन में) पाच विरक्त होकर गए उसका नाम अश्ववन वा पुष्पदन्त के अनुसार वह अश्वत्थवन था । इन दोनों के अनुसार शिविका का नाम विमला था । दोनों परम्पराओं के अनुसार सर्वत्र यह निर्देश है कि पार्श्व ने ३० वर्ष की अवस्था में तथा ३०० अन्य राजपुत्रों के साथ दीक्षा ग्रहण की। १. हिस्ट्री आफ इंडिया पृ. ४९५, ५५१ तथा ५५२ लेखक श्री मजुमदार । २. ए ब्रीफ सर्वे ऑफ जैनिजम इन दी नार्थ पृ. ७ लेखक यू. पी. शाह । ३. सि. पा. १६२. ४. त्रि. श. ९. ३. २१५ से २३२. ५. क. सू १५७. ६. स. २५०. ७ . सू. १५७. ८. उ. पु. ७३. १२७. ९. महापुराणु. ९१. २२. १०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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