________________
१६२] पार्श्वनाथचरित
[पुन्वपुव्व-पूर्व १.१८.२,३.१५.१०
Vपेच्छ-पिच्छ-दृश प्र० + ईक्ष (= देखना हे. ४.१८१) १.१६.१०५.६..
पू० कृ० पेच्छेवि ३.१४.६. ५.६.११,६.६.११ (बहुशः)
-पिच्छिवि ३.२.३. पुव्व-पूर्व (= एक कालमान) १६.१२.७,१७.१४.१
PV पेल्ल प्रर (१) क्षिप (हे ४.१४३ = फेंकना-गंवाना), पुव्व-पूर्व (दिशा) ३.१०.२,१०.१२.१
वर्त० तृ० ब० पेल्लंति २.८.५. पुठव-पूर्व (उत्पाद; अग्राहणीय आदि चौदह पूर्वाग
(२) पीडय् (= दबाना) ६.१७.५:७.२.११
वर्त० तृ. ए. पेल्लइ ७.५.१० पुव्वंग-पूर्वांग (= एक कालमान ) ५.७.१०
कर्म० वर्त० कृ० पेल्लिजंत ११.४.६. पुवण्ह-पूर्वाह (= दिनका प्रथमा) १३.१२.१०
पेसल-पेशल ६.७.२. पुव्वावर-पूर्व + अवर ( पूर्व तथा पश्चिम ) १८.७.५
पेसिअ-य-प्र+ एषय का भू० कृ (= भेजा गया) पुगण-त स (= पुराणशास्त्र ) २.१.८:१८.२०.१
१.१८.३,१२.६.७. पुगेहिय-पुरोहित १.१०.१२.३.३;६.७.३
पेसण-प्रषण (= नियोजन) १-११.८,२.१३.३; ६.२.३. पुसिय-प्र+उछ (हे०४.१०५) का भू० कृ० .
पेसुण्ण-पैशुन्य ३.८.५:१८.२.४. (=पोछना) ६.५.५ .
पहणा-प्रेक्षणा ( = आत्मचिंतन) ४.२.१. पुहइ-पृथवी १.७.१०२.२.१,३.६.६;४.१.५:५.१.१३
पोएमवरिस-पद्मवर्ष ? ( = रम्यकं क्षेत्रं ?) १६.११.८. पुहवीसर-पृथ्वी + ईश्वर (राजा) ६.५.११,६.२.४
पोकरणि-पुण्करिणी १.६.५. पूअ-पूग (=सुपाडीका वृक्ष ) ७.६.१०
पोक्खर-पुण्कर (वरद्वीप) १६.१४.७. पूअप्फल-(= पूगफल ) १४.२.६
पोक्खरद्ध-पुण्करार्ध (द्वीप) १६.१४.६. Vपूर-पूरय् (१ = पूरा करना )
पोग्गल-पुद्गल २.८.८. वर्त० तृ० ए० पूरइ ६.१३.११
पोढ-पौढ १.३.५. प्रे० वर्त० प्र० ए० पूरवमि १०.१.७
पोथावायय-पुस्तकवाचक ६-६.८. वर्त०, कृ० पूरंत ८.६.२
पोयणपुर-पोदनपुर १.५.६.,३.१५.८. -पुजत १३.५.५ -पजमाण ७.५.
फंफावा- १ (= एक पकारके देव) ८.१४.३. भू० कृ० पूरिय १७.१६.५
फणस-पनस ( = कटहलका वृक्ष) १४.२.५. कर्म वर्त० ४० ए० पजइ (?) ४.३.३
फणिमंडव-फणिमंडप(= फनोंका समूह)१४.२६.४,१४.२८.४. (२%पूर देना)
फल-त स १.५.३,२.१५.५. भ० तृ० ब० परेसहि १७.८.८
फलासण-फलाशन (= फल ही जिनका भोजन है) १३.६.१०.
फरिस-परशु (= फरसा) ११.१.१४,११.७.१,१४.१३.४; पूर-(= पूर्ति करनेवाला) ८.१८.१,१२.६.२
१४.२८.२. पूरणत्थ-पूर्ण + अर्थ (= जिसकी इच्छा पूरी होती है वह )
फरिस-स्पर्श १४.१४.३५४.१४.१४.१६.२.६.
फरुष-परुष ६.१०.४, १७.६.८. पूरविय-(= पूर्ण संख्या) १७.८.८
Vफाड-पाटय (हे. १.१६८१.२३२ = विदारित करना = पेअ-य-प्रत २.८.४,२.१३.११
फाड़ना) पेयाहिव-प्रताधिप १४.५८.३
भू. कृ फाडिय २.१२.६. Vपेक्ख-पिक्ख-प्र + ईक्ष ( = देखना)
प्रे० भू० कृ फाडाविय ४.१२.६. वर्त० तृ० ए० पेक्खह ८.६.१८.७.१
फालिह-स्फाटिका ७.१३... वर्त० कृ० पिक्खंत १.१८.६
फासण-स्पर्शन (पालन) ७.५.४. . भू० कृ० पिक्खिवि १.११.१३
फासुअ-व-प्रासुक ( = जीव-रहित) ४.१.६७.७.६. -पिक्खेविणु १.११..
-फासू १४.३.१. -पेक्खिवि २.२.३,३.१४.७३.१५.१४.११.७
*/फिट्ट-भ्रंश (हे० ४.१७७. =फिट जाना) -पेक्खेविणु १.१२.१
वर्त० तृ० ए० फिइ २.४.१०,३.३.५,१६.१२.".
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org