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________________ १३२ पार्श्वनाथचरित [कुरंगकुरंग-त स (=भीलका नाम) ५.१.३.५.१०.३, केम-कथम् (हे. ४.४.१) ५.१.७, ८.१२.३; १२.१०.७ -कुरंगम ५.११.६५.११.६ केयार-केदार (= खेत ) १.५.४, १४.५.८ कुरंग-त स ( = मृग) १४.२१.६ -केयारा १.५.४ कुरव-कुरबक १४.२.४. केयूर-त स २.१६.८ *कुरुलिय-(= पक्षियोंकी ध्वनि) १०.१२.३ केर-( सेवा) ६.६.७; १२.७.१२ कुल-त स १.१५.२.२.६.७.११.३.४ केर-(= संबंध सूचक परसर्ग) २.१०.५ कुलगिरि-त स (= श्रेष्ठ पर्वत) ४.४.१;५.१.३,१६.११.१ -केरउ २.१०.५ कुलपवय-कुलपर्वत १६.१४.३ -केरा १८.६.८ कुलपसूअ-कुलप्रसूता (=उत्तम कुलोत्पन्न) ४.४.८ –केरी १३.१५.४ कुलबहुअ-कुलवधू+क १०.१२.. केव-(= कथम् ) १.१६.७, १६.१.४ कुलभूसण-कुलभूषण३.८.. केवि-केऽपि १.१०.१० कुलयर-कुलकर (= युगके प्रारंभमें मनुष्योंका उद्धार करने केवट्ट-केवट ७.१२.६ वाला महापुरुष)-१७.३.५,१७.६.१.. केवलगुण-त स (= केवलज्ञान) १५.१.५ कुलिया-(१) कुलोत्पन्न ६.४.११ केवलणाण-केवलज्ञान १.१.३, ६.१६.२ ( बहुशः) कुलिस-कुलिश (= वज्र) ८.१३.१८.२२.४१.४.. केवलि-केवलिन् २.१४.६ कुलिसदंड-वज्रदंड १४.१३.८ केसर-त स (= पुष्प-तन्तु ) ६.११.६ कुलीण-कुलीन १.१०.८.२.६.४ -केसराल (= केसरयुक्त) १४.२५.२ कुवलयदलक्ख-कुवलयदलाच (= नील कमलके पत्रके समान केसर-त स ( सिंहकी भायाल ) ८.६.३ आँखोंवाला) ६.८.१०८.१६.३ केसरि-केसरिन् ६.२.६; १३.३.८ कुवि-कोऽपि; कमपि १.११.१०,२.७.१ ( बहुशः) केसव-केशव( = नारायण) १७.७.१० कुविय- कुपित १२.६.४ कोइ-कोऽपि १.२.५; १.८.२ कुवियाणण- कुपित + आनन११.१२.१८ कोइल-कोकिल ५.२.४, ६.९.६; १०.५.१ कुसंग-कुसंग १६.४.१० कोइलछय-कोकिलच्छद ( = कोकिल वृक्षका पत्ता ) १३.४.५ कुसग्ग-(= राजगृह नगर ) १७.१२.६ . कोऊहल-कौतूहल (= कौतुकके कार्य) ८.१८.१० कुसत्थ-कुशास्त्र १३.१०.१० ६.१.८% १२.१५.१ कुसत्थल-कुशस्थल (=कन्नौज) 8.७.२,१३.२.३ कोंडलि-कुण्डली (=जन्मके समय ग्रहों की स्थितिका निर्देश ) कुसल-कुशलः १.१३.९,९.७.६ कुसील-कुशील १.१०. १४.२१.२. कुसुम-त स ३.१०.६; १०.५.७. कोंत-कुन्त (=भाला ) १०.२.३, ११.१.११, ११.७.१ कुसुमंजलि-कुसुमाञ्जलि ११.८.१. कोकण-(=प्रसिद्ध प्रदेश ) ११.५.१० कुसुमाउह-कुसुमायुध ३.२.६, ७.५.१०, ८.११.७ &V कोक-व्याहृ, (= बुलाना; हे. ४.७६) भू० कृ० कोक्किय ५.६.२ कुसुमवास-(= कुसुमवृष्टि ) १२.१५.१५ कुहर-त स (= विवर ) २.१.८ प्रे० भू० कृ० कोक्काविय १.११.६; २.३.२ कुहिणि-(=मार्ग; दे. ना. २.६२) १.१४.५.१३.४.८ कोट्रवाल-कोटपाल ६.६.६ कूड-कूट ( = पर्वत-शिखर ) १.७.६ कोट्ठ-कोष्ट ( = एक ऋद्धि ) ५.८.२ कूड-कूट (= छल) १८.२.७ कोडाकोडी-कोटाकोटी ( = एक करोड़का एक करोड़से गुणा कूडत्त-कूटत्व ३.६.४ करनेपर प्राप्त संख्या )१७.४.८ कूअ-व-कूप १.६.५; ३.२.६; १.१०.६ कोडि-कोटि २.८.३, ६.३.२, १७.१६.१ केअय-केतक (= केवड़ा) १४.२.५ कोढ-कुष्ठ ३.८.१ ५.११.६ केउ-केतु ६.२.६; १६.... *कोण-(- काला, दे० ना० २.४५) १२.६.११ केऊर-केयूर ५.११.५, ७.११.८,९.१.१२ कोमल-त स ५.२.६, ६.१.८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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