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________________ ११५ ] अंचिय-अक्षित ( = युक्त ) ६.१.१२ अंजणगिरि - अंजनगिरि १४.१६.१२ अंजलि - त स १५.६.२ अंड - ( शरीरका एक अंग ) २.१२.३ अंत-तस ( = समाप्ति ) २.६.८ २.११.४; ४१२.५ अंत - अंत्र ( = आंत ) ११.३.१६; १८.४.४ अंतकाल - त० स० ( = मरण ) १.२२.११ V अंतर - अंतरय् वर्त०तृ०ब० अंतरति १८.२.६ भू० कृ० अंतरिय १६.१५.५ अंतयडसम अंतरांग आठवाँ सांग ) ०.२.६ अंतराय -तस २.१५८; ६.१५.११; ६.१६.६.१३.६.८ अंतरि अंतरे (बीचमे ) १०.३.१ = अंतेडर - अंतःपुर १.६.६; २.१.४; २.३.२.२.३.६, ६.१.२ अथमिय-अस्तमित १०.६.१०; १०.१०.१ अंथवण--अस्तमन (= अस्त होना) १०.७.६; १०.८.१ अंदोलय-आंदोलक (फूल) १२.४.२ = - अंध-त स३.८.११ अंधारय - अंधकार १४.२०.१२ अंधारिय-अंकारित १४.२२.५० अंबर - त स ( = आकाश ) ८.१५.६; ११.१३.३; १६.१६.१० अंसु - अश्रु ३.१६.२ -अंसुव १.१६.६ अकलंकिय-अकलंकित ६.१८.४ १०.11.11 अकल - त स ( = कला रहित = अविभाज्य ) १५.१०.३ अकाल - त स ( = असमय ) १७.४.१० अक- अर्क (सूर्य) १२.१०.१० = अक्ख - अक्षम ३.७.१ ३.१३.४ 'अक्ख - अक्षि (= आंख ) ६.८.१० अक्ख - अक्ष ( = एक प्राणी ) १८.३.४ अक्ख-अक्ष (= जीवात्मा ) . १२.३ V अक्ख - आ + ख्या (= व्याख्या करना = कहना ) वर्त० तृ० ए० अक्खड़ २.१४.६ वर्त० प्र० ए० अक्खमि १.१४.४, ३. ६.१३.१०.१२ अक्खय-अक्षय १५.१.६ पार्श्वनाथचरित वर्त० कृ० अक्खंत १०.१३.३ भू० कृ० अक्खिय ३.१५.१२; ३.११, १०.६.३.१०; पू० कृ० अक्खिवि ४.१२.१० - अखय ६.८.७८.२२.५; १४.१.१ अक्खय - अक्षत (= पूजाके चावल ) १३.२.७ Jain Education International अक्खर -अक्षर २.५.१; १८.२०.३ अक्खसुत्त - अक्ष सूत्र ७.१३.७ 'अक्खाण - आख्यान १६.१२.१० अक्खीण-अक्षीण ७.७.६ अक्खोह - अक्षोभ (= क्षोभरहित ) ६.६.५ अक्खोहणि अहिणी १२.५.२३१२.५.८ अखंडिय - अखंडित ६.२.१२.६.१८.१२ अखत्त - अक्षात्र (= क्षत्रियके लिए अनुचित ) १३.३.२ अखलिय-अस्खलित १.१.५७.१०.२८.१७.१० V अगण- अ + गणय् वर्त० तृ० ब० अगणयंति १२.२.८ वर्त० कृ० अगणंत १.२१.६५.१०,४ अगाह - अगाध ६.१०.३,१.६.३; १३.१३.१० अगुणण - ( = मननहीन) १४.२४.७ अग्ग - अग्र ( = समक्ष, सामने) १.१७.८४.१.१० 'अग्ग - अग्र ( = अग्र भाग ) ६.१२.५ अग अग्र (प्रधान) ५.२.१ [ अंचिय अम्मायणीय-अग्रावनीय (= दूसरा पूर्वाग) ७.३.१ अग्गिकुमार -- अग्निकुमार ( = भवन वासियोंका एक भेद ) १६.६.५ = अमोय - आग्नेय (१ दिव्याख) १३.७.११,१२.०.२ ( २ = दिशा ) ३.१०.२ अचल-त स ३.६.१ अचल - त स ( = तीसरा बलदेव ) १७.२०.१ अचलिंद - अचलेन्द्र ( = मेरु पर्वत ) १६.५.१ अर्पित ४.८.२८.१८.१०१०.४.१,११.२.३ अच्चंत - अत्यंत ७.६.३ अच्चन्भुव - अति + अद्भुत १४.४.६ अच्चिय-अर्चित १७.२४.१ = अच्चुव-अच्युत (सोलहवाँ स्वर्ग ) ४.११.७५.३.२०१६.५.० अच्चेल-अचेल (= वस्त्र रहित ) ४.८.६ V अच्छ - अ + क्षि ( = रहना ) For Private & Personal Use Only ० ० ० अ५ि.५.७ वर्त० द्वि० ब० भच्छहु २.१०.३ वर्त० तृ० ए० अच्छइ १.११.३४.२.६५.७.१ वर्त० तृ० ब० अच्छहिं १.५.६ आ० द्वि० ए० अच्छु १०.२.८ वर्त ० कृ० अच्छंत ७.६.८८.३.१ स्त्री० अच्छंति १.११.१३ अच्छ-तस अच्छ ( = निर्मल ) १.२२.६ स्त्री० ५.१.३ www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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