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________________ १८, ६] अनुवाद [१०६ शंख, खुल्लक, शुक्ति तथा अक्ष दो-इन्द्रिय जीव हैं । मत्कुण, मकड़ी, कुंथु, कनखजूरा आदि तीन-इन्द्रिय जीव हैं । गोकोट, डांस, शलभ, भ्रमर, मशक आदि चार-इन्द्रिय जीव हैं। कुक्कुट, श्वान, पक्षी, शृगाल और बालवाले (प्राणी), सर्प, जीवभक्षी, गो, महिष, बन्दर, बिल्ली, रीछ, मोर, गोह, मेंढक, मत्स्य, कच्छप, गज, तुरग, सूकर, बैल, सिंह, गर्दभ, नकुल, व्याघ्र, डरावनी जीभवाले (प्राणी) पाँच-इन्द्रिय जीव हैं। तिर्यग्गतिमें पाँच-इन्द्रिय जीव अनेक प्रकारके हैं। वे संज्ञी हैं। छह पर्याप्तियोंसे पर्याप्त अन्य जीव असंज्ञी कहे गये हैं ॥३॥ तिर्यग्गतिके दुख; उसमें जिस प्रकारके जीव उत्पन्न होते हैं उनके कर्म तिर्यम्गतिमें दुख प्रत्यक्ष ही है। हे नरनाथ, उसका मैं वर्णन करता हूँ। चक्र, सेल्ल तथा तलवारके दारुण प्रहारोंसे छिन्न-भिन्न किया जाना तथा शरीरका चीरा जाना, मुद्गर और लट्ठके प्रहारोंसे पीटा जाना, शक्ति, भाला तथा करपत्रोंसे फाड़ा जाना, कान, पूछ, शिर और पराका काटा जाना, अतड़ी, दाँत, चमड़ा और हड्डीका तोड़ा जाना आदि अनेक प्रकारके असंख्य दुख तिर्यग्गतिमें सहे जाते हैं । मनुष्य पूर्णतः अधर्म तथा पूर्वमें किये गये अनेक दुष्कृत कर्मोंके कारण ही वहाँ जाते हैं। जो पापी मनुष्य दूसरोंके घरमें सेंध लगाते हैं, वे मनुष्य अशुभ तिर्यम्गतिमें जाते हैं। जो ( मनुष्य ) मायावी हैं, शील और व्रतोंसे रहित हैं, अपने कार्यके लिए दूसरोंको ठगनेमें लगे रहते हैं तथा हितकर आचार ग्रहण नहीं करते वे पशुओंकी योनिमें उत्पन्न होते हैं । ____ जो लोभ, मोह और धनमें फंसे हैं और ऋषियों, गुरुओं और देवोंकी निन्दा करनेवाले हैं वे नर स्थावर और जंगम जीवोंमें तथा स्पष्टतः तिर्यञ्चोंमें जाते हैं ॥४॥ मनुष्यगति; भोगभूमि और कर्मभूमि; भोगभूमिका वर्णन हे नरकेसरी, गुणसमूहके सागर तथा गुणोंके भण्डार अब मैं मनुष्यगतिके बारेमें बताता हूँ; सुनो। मनुष्यगतिमें मनुष्य दो प्रकारके होते हैं । यह जिनागममें जिनवरदेवोंने कहा है। वे भोगमूमि या कर्मभूमिमें उत्पन्न होते हैं तथा धर्म और अधर्मका फल भोगते हैं। (पहिले मैं) भोगभूमिमें उत्पन्न (मनुष्यों) के बारेमें बताऊँगा;, बादमें तुम कर्मभूमि में उत्पन्न मनुष्यों) के विपयमें सुनना। भोगभूमियाँ तीस कही गई हैं। वहाँ कल्पवृक्ष सुने जाते हैं। वे दस प्रकारके बताये गये हैं। वे इन पुण्य तथा रूप-युक्त सुखमय भूमियोंमें ही होते हैं । वहाँ रवि और चन्द्रका प्रकाश नहीं दिखाई देता । वहाँ मनुष्य वृक्षोंके प्रकाशमें निवास करते हैं। कुछ वृक्ष यथेच्छ मद्य प्रदान करते हैं, कुछ इच्छानुसार रत्न और वस्त्र प्रस्तुत करते हैं तथा कुछ चारों दिशाओंमें प्रकाश फैलाते हैं । वहाँ तूर्य दिन और रात्रिमें बजनेसे नहीं रुकता। वे उत्कृष्ट भोगभूमियाँ दस प्रकारके तरुवरोंसे भूषित हैं। वे अठारह मंजिलवाले, विशाल और उत्कृष्ट गृहोंसे चारों दिशाओंमें शोभायमान होती हैं ॥५॥ भोगभूमिमें उत्पन्न होनेवालोंके सत्कार्य जो मनुष्य भोगभूमियोंमें उत्पन्न होते हैं, हे नरवर, मैं उन्हें बताता हूँ; सुनो। पूर्व ( जन्मों ) में जिन्होंने अनेक सुकृत कर्म किये हैं वे निरन्तर सुख पानेवाले मनुष्य यहाँ उत्पन्न होते हैं। वे वनिताओंके साथ दस और अठारह मंजिलवाले गृहोंमें भोग-विलास करते हैं । उन्हें श्वास आदि रोग कभी भी नहीं होते। वे मृत्युको प्राप्त होकर स्वर्गमें सुख पाते हैं । जिन्होंने भावसे ( सु ) पात्रोंको दान दिया है; जिनका जन्म सरल स्वभावसे व्यतीत हुआ है; जो मनुष्य प्रतिदिन निष्कपट व्यवहार करते हैं: जो अपने मनको दसरोंके धनसे पराङमुख रखते हैं। जो सरल स्वच्छ स्वभाव, और इन्द्रियोंका दमन करने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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