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________________ पार्श्वनाथचरित [१७,२० नौ बलदेव उनके नाम, जन्म आदि विजय नामका प्रसिद्ध हलायुध ( = बलदेव ) पहिला तथा गुणोंसे समृद्ध अचल दूसरा ( बलदेव ) था । धर्म तीसरा, सुप्रभ चौथा, शशिकी प्रभाके समान नरश्रेष्ठ सुदर्शन पाँचवाँ, दुर्धर हलायुध नन्दि छठवाँ, धुरन्धर नन्दिमित्र सातवाँ, राम (आठवाँ) तथा पदम (नौवाँ ) बलदेव था। ये नौ ही बलदेव विद्यावान् तथा धनुर्धर थे। ये नरेश्वर अन्य जन्मोंमें तपस्याकर इस पृथिवीपर बलदेवके रूपमें उत्पन्न होते हैं। पुरोंसे मण्डित समस्त पृथिवीका उपभोग कर वे अखण्डित रूपसे जिनदीक्षामें स्थित होते हैं । घोर और महान तपस्या कर तथा मत्सर-रहित शीलका अनेक वर्षों तक पालन कर ये बलदेव आठ सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं तथा कलिकालके अत्यन्त प्रबल दोषों और पापोंसे रहित होते हैं। नौवाँ बलदेव ब्रह्मलोक नामक स्वर्गमें गया है। वह वहाँसे आकर सिद्धि ( = मोक्ष ) प्राप्त करेगा। अन्य भवों में हलधरों ( = बलदेवों) ने प्रचुर दान द्वारा तपका संचय किया, फिर महीमण्डलपर राज्य कर शिवसुख प्राप्त किया ॥२०॥ २१ नौ नारायण उनके नाम आदि नरोंमें श्रेष्ठ 'त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भूधीर, पुरुषोत्तम, पाँचवाँ विचक्षण "पुरुषसिंह तथा लक्षणयुक्त पुरुषवर 'पुण्डरीक नामके ( नारायण ) हुए। सातवाँ गुणोंसे युक्त दत्त तथा आठवाँ नराधिप नारायण था। नौवाँ कृष्ण नामसे प्रसिद्ध तथा द्वारवती (द्वारका ) में धन और सुवर्णसे समृद्ध था। दर्शन-शुद्धिसे रहित तथा मनमें भ्रान्त एवं दुःसह भोगसे रहित होनेके कारण दुःखी ये (नारायण) अन्य भवमें महान तपस्या कर, सुखकी इच्छा करते हुए निदान-सहित मृत्युको प्राप्त होते हैं । वे सुरोंके बीच प्रधान होकर पृथिवीपर आते हैं तथा फिरसे राजा होते हैं। वे विपुल और विशाल सुख भोगकर मृत्युको प्राप्त होते हैं और नरकोंको जाते हैं । अनुपम बलशाली तथा प्रहरणोंके धारक बलदेव और केशव ( =नारायण) निरन्तर स्नेह-युक्त हो भरतक्षेत्रके प्रधान राजाओंके रूपमें उत्पन्न हुए थे ॥२१॥ २२ नौ प्रतिनारायणों के नाम अब नौ प्रतिवासुदेवों ( = प्रतिनारायणों ) के बारेमें सुनो। वे उत्तम कुल और रूपके कारण दर्पशील थे । पहिला हयग्रीव महातेजस्वी था। उसने पृथिवीपर विपुल यश फैलाया। (दूसरा ) नृप तारक था जो तीन खण्डोंका स्वामी था। (तीसरा ) मेरक पृथिवीका राजा और शत्रुओंके लिए सिंह था । (चौथा) मधुकैटभ भुवनमें श्रेष्ठ बलशाली तथा (पाँचवाँ) निशुम्भ नराधिप तथा वैरियोंके लिए कण्टक था । (छठवाँ ) बलशाली बलिष्ठ, ( सातवाँ) प्रह्लाद प्रभु, ( आठवाँ ) रावण और (नौवाँ) जरासन्ध तेजस्वी थे। ये नौ ही अत्यन्त बलवान् , धीर, वीर, चक्रधारी तथा शास्त्रधारी एवं दृढशरीर थे । जिन्होंने निदान-सहित घोर तप किया तथा उग्र तप एवं चिह्न और वेष धारण किया । ये नौ ही प्रति वासुदेव स्वर्गसे च्युत हुए तथा भरतक्षेत्रमें देवोंके समान उत्पन्न हुए। ये अत्यन्त बलशाली और दर्पशील नराधिप नरश्रेष्ठोंसे आपसमें युद्ध करते हुए बलवान् और दुर्धर नारायणों द्वारा अपने चक्रोंके प्रहारोंसे मारे जाते हैं ॥२२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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