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________________ २] पार्श्वनाथचरित [१४, १०वे दोनों हाथोंसे नभतलको धारण करते हैं। जो तू इसके गुणोंकी बार-बार प्रशंसा करता है, ( अतः ) तू इसका पक्षपाती और भक्त है । यदि तुझमें कोई शक्ति है तो अपने स्वामीके कार्यके निमित्त उसे शीघ्र प्रकाशित कर ।" ___ "आपत्ति आनेपर जो सहायक हो वही मित्र है, बन्धु है, भक्त है तथा अनुराग रखनेवाला है। जो शूर होनेका अनुभव तो करता है पर कार्य आनेपर शूर नहीं वह ( उसका ) परिणाम सहता है" ॥९॥ १० असुरका वज्रसे आघात करनेका असफल प्रयत्न यक्षके प्रत्युत्तरकी राह न देख वह ( असुर ) वज्र लेकर तीर्थकरकी ओर दौड़ा। दोनों हाथोंसे ज्योंही वह आघात करने लगा त्योंही तप ( के तेज ) से संत्रस्त शस्त्र ( हाथसे ) छूट गया। तेजस्वी कमठासुर मनमें आकुल हुआ तथा उसी क्षण निमिषार्धमें ही गगनमें जा पहुँचा (तथा सोचने लगा कि) अब मैं कौन-सा उपाय सोच निकालूं जिससे इस पूर्व वैरीके शरीरका नाश करूँ। इसे जब तक ध्यानसे चलित नहीं करता तब तक वैरीके शरीरतक मैं नहीं पहुँच सकूँगा। इसे अब कोई वाऊँ जिस कारण ध्यानसे इसे क्षोभ उत्पन्न हो। तत्पश्चात रिपको पंचतत्त्वोंमें मिलाऊँगा मानो मैं निशाचरोंको बलि दे रहा होऊँ। इसी समय उसने पाँच रंगोंसे युक्त मनोहर, विशाल, नभमें स्थित, अनेक प्रकारके, नूतन, स्थिर और अच्छे दिखाई देनेवाले (मेघ) उत्पन्न किये । वे सब नभको अलंकृत कर वहीं स्थित रहे। विविध प्रकारके, पर्वतके समान आकारके तथा सघन घनोंसे नभतल विभूषित हुआ मानो अत्यन्त विशाल पाँच प्रकारके विमानोंसे युक्त देवोंके शिविरने पड़ाव डाला हो ॥१०॥ ११ मायासे उत्पन्न मेघोंका वर्णन उस ( असुर )ने आकाशमें विद्युत्-पुंजकी रेखा तथा प्रवाल और हेमकी शोभासे युक्त, हिम और हारके समान शरीर और मृणालके समान वर्णवाले, श्वेत आतपत्रके समान शुभ्र, चन्द्रकान्तिके समान उज्ज्वल, प्रियंगु और शंखके समान स्वच्छ, मयूरके समान आकर्षक, तमाल और तालके समान श्याम, कामके समान इच्छानुसार रूपवाले, अपने अग्रभागसे मनोहर, मन्थरगति, जल धारण करनेवाले, विचित्र चित्रोंसे चित्रित, दूसरे ही क्षण चित्र रहित, उत्तम रंगोंसे रंगे हुए, समान रचनासे रचे गये, सघन घन उत्पन्न किये । जिस प्रकारके कभी देखे नहीं गये थे उस प्रकारके (मेघ) उसने उपस्थित किये। ___ उसने अनेक रंगोंके तथा अत्यन्त मनोहर मेघोंका निर्माण किया। वे गगनतलमें स्थिर रहे। यक्ष, राक्षस, देव और मनुष्य तथा ग्रह-समूह और सर्प उन्हें आकाशमें देखकर विस्मित हुए ॥११॥ १२ __ मायासे उत्पन्न पवनकी भीषणता नभमें विचित्र रूपसे मेघोंका आगमन देखकर, कहिए, किसका मन व्याकुल न होगा ? किन्तु, अध्यात्ममें लीन परमेश्वर जिनभगवान्का चित्त व्याकुल न हुआ । जब देवोंके परम देव ध्यानसे चलित न हुए तो वह दयुक्त शत्रु चिन्ता करने लगा कि किस उपायसे आज मैं इसके सिरपर गर्जता हुआ वज्र पटकूँ। जब वह भयानक असुर इस प्रकारसे चिन्ता कर रहा था तब उसके मनमें पवनका ध्यान आया। उसने दुस्सह, दारुण, भीषण,प्रबल, गर्जता हुआ और अति प्रचण्ड पवन प्रवाहित किया । वह वर्तुलाकार हो सन्-सन् ध्वनि करता तथा वावु-उद्मम तथा वायुके झकोरोंको प्रकट करता (मानो) घनवात, घनोदधि और तनवात लोकके सीमा-भागको छोड़कर वहीं आ गई हों। उद्यान (के वृक्ष) तथा पर्वतोंके विशाल शिखर ढा गये तथा पत्तन और नगर-समूह ( उड़कर ) आकाशमें पहुँचे। ( पवनने ) अचल शिखरोंको तलसे उखाड़ फेंका, प्रकृष्ट विमानोंको आकाशमें झकझोर डाला, विशाल और भीषण समुद्रको प्रचालित किया, अत्यन्त विकराल बड़वानलको क्षोभित किया तथा पूरे भुवनतलका निरीक्षण किया मानो प्रत्यक्ष काल अवतरित हुआ हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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