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________________ १३, ६] अनुवाद [७३ सम्मान किया। उसी समय यवनराजका मन्त्री आया। उसने रविकीर्ति-नृपके चरणों में प्रणाम किया तथा अत्यन्त उज्ज्वल मुखसे निकले विदग्ध और मधुर शब्दोंमें नृपसे यह कहा-“हे नृपकेसरी, कुलप्रदीप, गुणरूपी रत्नोंसे प्रदीप्त आप मेरी एक बात सुनें। गजोंमें दाँत, अश्वोंमें द्रुतगति, नागोंमें समुज्ज्वल मणिरत्न, युवतियोंमें शील तथा पंचानन सिंहमें अयाल जिस-जिस प्रकारसे प्रधान है उसी प्रकारसे श्रेष्ठ पुरुषोंके लिए मान समझा जाता है। उस मानको रणमें नष्ट कर अब उस ( यवन ) के लिए और अधिक क्या दण्ड हो सकता है ? हे नरपति, आप धन्य हैं, आप पुण्यात्मा हैं, जो आपके घरमें हयसेनका पुत्र आया है। अस्तु । अब आप यवनको मुक्त कर दें। इसमें विलम्ब किसलिए ? आप न्यायी हैं अतः आप मेरी बात माने।" (रविकीर्तिने) मन्त्रीके वचन सुनकर यवन नृपको मुक्त कर दिया। कुमारके पैरों में प्रणाम करनेवाला वह अपने नगर ले जाया गया ॥३॥ वसन्तका आगमन इसी समय वसन्तकालका आगमन हुआ । वह कामिनी-जनोंके लिए मनोहारी और मदका निवासस्थान है। उद्यानके कुसुमोंकी सुवासको लिये हुए, नन्दन वनकी सुगन्धातिशयको महकाता हुआ, हिंडोलोंसे पृथिवीको परिपूर्ण करता हुआ तथा ताम्बूल रसकी छटाको बखेरता हुआ, कपूर और मालती कुसुमोंसे शोभित, कुसुमोंका संचय करनेवाला, मुनियोंमें मोहका उत्पादक, कोकिलपत्रोंसे रचे गए मण्डपोंसे रम्य, भ्रमणशील प्रमदाओंको सुख देनेवाला, वजते हुए मद्दल और तूर्यसे मुखरित, मनुष्योंको चन्द्रके समान आनन्द पहुँचानेवाला, कोकिल और कपोतकी मधुर-ध्वनिसे युक्त, गृहोंमें अनेक पुरुषोंको सन्तोष करानेवाला माधव मास पुर, नगर, वीथि तथा चौराहोंपर अपना प्रभाव डालता हुआ उपस्थित हुआ, मानो उत्तम वृक्षों तथा आम्रमंजरीसे युक्त कामदेव (ही) जगमें अवतरित हुआ हो। आम्रकी मंजरी लेकर शुक उसे मनुष्योंकी दृष्टिमें लाये मानो वे वसन्त नरेन्द्र के पत्रकी प्रज्ञप्ति जगमें कर रहे हों ॥४॥ पार्श्वके साथ अपनी कन्याका विवाह करनेका रविकोर्तिका निश्चय उस अवसरपर श्री रविकीर्ति नृपने मन्त्रियोंके साथ यह मन्त्रणा की। "मेरी कन्या प्रभावती एक श्रेष्ठ कुमारी है। वह कलाओं और गुणोंसे समन्वित तथा रूपवती है। उसका पाणिग्रहण पावकुमारके साथ इसी समय किया जाये। इसके अतिरिक्त और मन्त्रणासे (अभी ) कोई प्रयोजन नहीं ।" नरनाथके वचन सुनकर मन्त्री रोमांचित हुए और प्रन्नतासे कहा कि "आपकी यह इच्छा पूरी हो ही रही है अतः यह कोई उलझी हुई बात नहीं है न हि इसमें मन्त्रणा की (कोई ) आवश्यकता है। यदि कन्या उत्तम पुरुषको दी जाती है, तो, कहिए, क्या इसमें किसीको विरोध होगा?" ये वचन सुनकर कन्नौजके निवासियों के लिए परमेश्वर रूप नृपने अत्यन्त बुद्धिमान्, स्थिरचित्त और सुबुद्धि विमलबुद्धि नामके ज्योतिषी को बुलवाया तथा उससे पूछा कि तुम विवाहकी तिथि शोधो तथा ऐसी लग्न बताओ जिससे ऋद्धिकी प्राप्ति हो। हे ज्योतिषी, तुम गणना कर ऐसी लग्न बताओ जिससे मेरी कन्या आयुष्मती होए। __ तुम गणना लगाकर ( ऐसी तिथि बताओ ) जिससे प्रभावती पार्श्वकुमारके मनको हरनेवाली होए, घर-घरमें और लोकमें प्रधान, अनेक पुत्रोंवाली तथा सुखोंकी भण्डार होए ॥५॥ विवाहकी तिथिके विषयमें ज्योतिषीका मत __ उन वचनोंको सुनकर विमलबुद्धिने ( कहा )-“हे नरनाथ, मैं विवाहकी तिथि बतलाता हूँ। अनुराधा, स्वाति, तीनों उत्तरा, रेवती, मूल, मृगशिरा, मघा, रोहिणी और हस्त ये ग्यारह नक्षत्र होते हैं जिनमें विवाह कहा गया है। वह पाणि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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