SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२, १५] अनुवाद [७१ न करते हुए अत्यन्त बलशाली हाथियोंके रोधको ( पीछे ) धकेलते हुए, जयलक्ष्मी रूपी महिलाको खींच लानेमें समर्थ तथा हाथमें तलवार लिये हुए वह नर ( यवन ) रथके अग्रभागपर पहुँचा । अग्निसमान तथा निरन्तर छोड़े गये बाणोंके भीषण प्रहारसे भयंकर भूकुटिवाला तथा शत्रुका नाश करनेवाला वह यवन-नराधिप आहत हुआ तथा पृथिवीपर जा गिरा ॥१३॥ यवनराजका भीषण संग्राम वह नरपति एक ही क्षण मूर्च्छित रहा तथा दूसरे ही क्षण उठ खड़ा हुआ। वह अपने हाथमें तलवार लेकर उसी प्रकार दौड़ा जैसे नभमें मेघ दौड़ता है। उसने सुभटोंपर कृतान्तके समान, जगका नाश करनेवाली अग्निके समान, यमके दुष्ट महिषके समान, गजोंपर रुष्ट सिंहके समान, चन्द्रपर राहुके समान, सोंपर दर्पयुक्त खगपतिके समान, रणमें कालकेतु के समान आक्रमण किया। दृढ़ भृकुटीसे भयंकर, समरमें धैर्ययुक्त, सुडौल और बलिष्ठ भुजाओंवाला, अचल वीर और नरश्रेष्ठ यवनाधिप नरेंद्रोंके समूहको डराता हुआ और उनका उपहास करता हुआ तथा विशाल गजोंको गिराता और मसलता हुआ रणमध्यमें अंकुशरहित गजके समान तेजीसे आगे बढ़ा । अत्यन्त आवेशपूर्ण, दुस्सह, लक्ष्मीका लोभी तथा आगे बढ़ता हुआ यवन नरेन्द्रों के द्वारा रोका गया । वह पृथिवीपर तलवार पटककर क्रुद्ध-दृष्टि पंगुके समान भिड़ गया। शोभायमान रथोंको वह नष्ट-भ्रष्ट करता तथा तलवारके प्रहारोंसे योद्धाओंका संहार करता था। उसने रथपर बैठे एवं क्रद्ध किन्हीं योद्धाओंको हाथसे पकड़कर पृथिवीपर दे मारा तथा हाथमें तलवार लिये हुए कुछ सामर्थ्य ( योद्धाओं) को नभमें घुमाकर भूतलपर फेंक दिया। शत्रुओंके लिए सिंहके समान यवनराजने जूझते हुए किन्हीं भटोंको खङ्गके वारों और प्रहारोंसे चीड़फाड़ डाला, किन्हींको मार डाला और किन्हीं योद्धाओंको मूच्छित कर दिया। इससे उसने सब सुरोंको संतुष्ट किया ॥१४॥ पार्श्व द्वारा यवनराजका बन्दीकरण आश्चर्य चकित, मध्यस्थ और ( युद्धके ) रहस्यको अच्छी तरह जाननेवाले समस्त देवोंने गगनमें प्रसन्नता पूर्वक साधुवादकी घोषणा की। नभमें देवध्वनि सुनकर क्रोधित हुआ वह शत्रु ( यवन ) पावके सम्मुख पहुँचा। दावानलके समान उसके अंग प्रज्ज्वलित थे। वह मन तथा पवनकी गतिसे एक ही क्षणमें वहाँ पहुँच गया। उस समय त्रिभुवनकी लक्ष्मीके निवासस्थान ( पार्श्व ) ने सहस्रों तीक्ष्ण बाण छोड़े। उनमें से कुछ बाण करों में, कुछ सिरमें, कुछ वक्षस्थलमें और कुछ पैरोंमें लगे । तत्पश्चात् ( पावने) उसकी तलवारको बाणोंसे जर्जरित किया। इससे यवनको बहुत क्रोध उत्पन्न हुआ। उसने टूटी-फूटी तलवारको फेंक दिया, भटोंमें भय उत्पन्न करनेवाली कटारे हाथमें लीं, बाणोंको तृणके समान समझा और यह कहते हुए कि पार्श्व, रणमें तू अब जाता कहाँ है ? वह ( पार्श्वकी ओर ) दौड़ा । ( पार्श्वने ) उस आते हुए पर मुद्गर फेंका, (किन्तु ) रणचातुर्यके कारण यवन उससे बच गया। जैसे ही (वह यवन) रण-चातुरीसे रथपर सवार होने लगा वैसे ही कुमारने 'उसपर जाल फेका। कटारीको हाथमें लिये हुए यवन रणमें बन्दी हुआ तथा हयसेनके पुत्र (पाव) को विजय प्राप्त हुई। उस अवसरपर स्वयं (जय) लक्ष्मीने दुर्निवार कुमारका प्रसन्नतापूर्वक आलिंगन किया। __ कुमारको देखकर जयश्रीने विशाल और अत्यन्त सुकुमार स्तनोंसे उसका स्पर्श किया तथा पद्मासे आलिंगित शरीरवाले भुवन-सेवित एवं उत्तम देवोंने रणमें कुसुमोंकी वर्षा की ॥१५॥ ॥ बारहवीं सन्धि समाप्त ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy