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________________ १०,१३] अनुवाद [५७ रणके कारण भयंकर और दोषपूर्ण थी तथा कंकालीके उपासकों और अभिसारिकाओंके लिए सन्तोषकारक थी। (सच है ) जब दुर्जन पुरुष अनुराग करते हैं तो समस्त त्रिलोक अन्धकारसे भर जाता है। वैताल और भूत किल-किल ( ध्वनि ) करते हैं तथा रात्रिमें इस प्रकारसे उछलते-कूदते हैं मानो जगको ही निगल जायेंगे। अन्धकारसे व्याप्त भुवन भयंकर हो उठा, ( सच है कि ) खलकी संगतिमें सुजन भी क्षुद्र हो जाता है। घोर अन्धकारके पटलरूपी जालमें फँसा हुआ यह जगत् ऐसा प्रतीत होता था मानो अन्धकारमें फेंक दिया गया हो । नगरके दीपों, मणियों और रत्नोंसे युक्त गृहोंने कुछ अन्धकारको दूर किया। __ रात्रिके अन्धकार-पटलसे आच्छादित होनेके कारण निर्मल आकाश सदोष हुआ, अथवा असती महिलाओंकी संगतिसे किसपर दोषारोपण नहीं किया जाता ॥१०॥ चन्द्रोदयका वर्णन इसी समय संसारको सुख पहुँचाता हुआ तथा अन्धकार-पटलका नाश करता हुआ चन्द्रमा नभमें उदित हुआ। आनन्दकी उत्पत्ति करनेवाला तथा परमार्थ भावको धारण करनेवाला वह (चन्द्र) नभमें अमृत-कुम्भके समान अवतरित हुआ। चन्द्रोदयके समय कुमुद-समूह विकसित हुआ तथा सरोवरोंमें विकसित कमल मुकुलित हुए। सौम्य चन्द्र भी नलिनीको नहीं सहाता! वह सूर्योदयपर ही प्रफुल्लित होती है और गुणोंका ( उत्कर्ष) प्राप्त करती है. अथवा इस संसारमें जो जिसके चित्तमें बसा हुआ है वह गुणहीन होते हुए भी, उसकी तृप्ति करता है। चन्द्रमाकी किरणोंसे अन्धकारका नाश हुआ तथा गगन ज्योत्सना-जलसे परिपूर्ण दिखाई दिया । क्रीड़ामें आसक्त युगलोंको सुख प्राप्त हुआ। उनके शरीरमें रोमाञ्च हुआ और अनुराग उमड़ पड़ा । भ्रमर-समूहके समान काली एवं भीषण रात्रिको चन्द्रमाने तम-रहित और शोभायुक्त बनाया, अथवा अत्यधिक दोषपूर्ण महिला भी सत्पुरुषकी संगतिमें शोभा देती है। (चन्द्रमाने) समस्त आकाशको कलंक-रहित किया किन्तु स्वयं चन्द्रमाका शरीर कलंकयुक्त रहा। जब विद्वान् तथा उत्तम पुरुष भी अपना कार्य भूल जाते हैं तो फिर अन्य लोगोंकी क्या बात ? ॥११॥ सूर्योदयका वर्णन जब रवि उदयगिरिके शिखरपर पहुँचा तब पूर्व दिशा आरक्त हुई। नक्षत्रोंकी पंक्तियाँ अत्यन्त विरल हो गईं। रविकी प्रभासे चन्द्रमाकी कान्ति फीकी पड़ गई। वृक्षोंसे पक्षी उड़ने लगे। सरोवरोंमें बक और सारसोंने कूजना प्रारम्भ किया, उसी प्रकार घर-घरमें मुर्गे बांग दे-देकर स्त्री-पुरुषोंको वियोगकी सूचना देने लगे। विरहातुर चक्रवाक हर्षपूर्वक मिले । वन्य पशु मनमें सशंक होते हुए वनकी ओर भागे। घर-घरमें दीप-शिखाओंका प्रकाश, जो ( पहले ) ताम्बूलके रसके रंगका था, अब बदरंग होकर मन्द पड़ गया। कुलवधुएँ अपने-अपने प्रियको सुख पहुँचाकर उठ बैठीं । पथिक रात्रिमें विश्रामकर अपनी-अपनी राह चल पड़े। अपने-अपने काममें दत्तचित्त गृहिणियाँ उठ खड़ी हुई। घर-घरमें निद्रा पूरी कर लोग जाग उठे। इसी समय अन्धकारका नाश करता हुआ आरक्त-गात्र सूर्य ( उदय ) गिरिके शिखरपर आ पहुँचा । नभमें फैलती हुई रवि-किरणोंने कमल-समूहको विकसित किया तथा चन्द्रमाका पक्ष लेनेवाले कुमुदोंने दिनके समय अपने शरीरको संकुचित किया ॥१२॥ सेनाका पुनः प्रस्थान सूर्यके उदित होनेपर अश्व, गज आदि वाहनोंसे युक्त कुमार (पार्श्व) की सब सेना चल पड़ी। उसमें सभी पुरुष आज्ञाका पालन करनेवाले थे तथा स्वेच्छासे कुमारके साथ जा रहे थे। सुरोंके समूह कुमारकी सेनाका अवलोकन करते तथा विजयकी भविष्यवाणी करते हुए आकाशमें विचरण कर रहे थे। पुर, ग्राम, देश, देशान्तर, कूप, वापी, उद्यान, सरोवर और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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