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________________ ६, १४ ] अनुवाद १३ हयसेन के वीरोंमें वीरताका संचार वह श्रेष्ठ नृपति सभा भवनमें उठ खड़ा हुआ मानो संग्राम - भूमिमें कोई अंकुशरहित हाथी हो । कोई सिंहासनको दबाता हुआ तथा पुप्प-समूहको पैरोंसे कुचलता हुआ उठा। कोई पृथ्वीपर प्रहार करते हुए तथा दाहिने हाथ में असिपत्र लेकर उठा । कोई दर्पोद्भट योधा हाथोंको रगड़ता हुआ और 'मरो-मरो' यह कहता हुआ उठा । कोई भट तलवार हाथमें लिये हुए तथा हवामें हाथपर हाथ मारता हुआ उठा । ( इस प्रकार ) उठनेवालोंके मोतियोंके हार टूटे तथा रोमांचसे पुराने घाव फूटे | वेगसे उठते हुए राजाओं के मणि और रत्न इस प्रकार गिरे जैसे वृक्षसे फल । उठनेवालों ( के कारण ) पृथ्वीका आधार हिल उठा और वह कच्छप ( जिसपर पृथ्वी स्थित है ) मानो नष्ट हो गया । उठनेवालों के कारण पूरा जगत् हिल उठा और शेषनाग पातालमें पैरोंसे कुचल डाला गया । जब वे वीर ( उस प्रकारसे ) उठ खड़े हुए तब राजा हयसेनकी वह राजसभा चन्द्रोदय के समय पवनसे आक्रान्त तथा क्षुभित समुद्र ज्वारके समान ( दिखाई दी ) | [ ५३ १४ यसेनका युद्धके लिए प्रस्थान I । ( उसी समय ) नगर में ( रण- ) भेरी बज उठी; ( उससे ऐसा प्रतीत हुआ ) मानो सिंह - शावकने गर्जना की हो । उसकी ध्वनि से सब योधा ( बाहिर) निकल पड़े । वे सब कवच धारण किये थे, आवेशमें थे और क्रोधित थे। हाथोंमें उत्तम खड्ग लेकर सुभट श्रेष्ठ घोड़ोंपर सवार हुए। श्रेष्ठ नर रथमें बैठे हुए निकले मदसे विह्वल तथा हौदा डालकर सज्जित किये गये विशाल हाथी बाहिर आये। इस प्रकार वह चतुरंगिणी सेना सब मार्गों और पथोंको रौंधती हुई नगरके बाहिर निकली । राजा हयसेन भी मंगल-विधिपूर्वक उत्तम रथपर आरूढ़ होकर नगरके बाहिर आये। उनके चारों ओर ध्वज, छत्र, चिह्न और खड्ग धारण करनेवाले नरश्रेष्ठ पदाति थे । उसी समय राजाको सैकड़ों रथों तथा मन और पवनके समान वेगवान् अनेक अश्वोंने भी घेर लिया । रथपर आरूढ़, हाथोंमें नाना प्रकार के महान् अस्त्र-शस्त्र लिये हुए, दर्पोद्भट तथा श्रीसम्पन्न ( पउमालिंगिउ ) वह नृप नभमें स्थित सूर्यके समान ( प्रतीत हुआ ) ॥ १४ ॥ ॥ नौवीं सन्धि समाप्त ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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