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________________ ४८] पार्श्वनाथचरित [८, २३ _ "आप भुवनमें प्रशंसा-प्राप्त हैं, मुनियों द्वारा नमस्कृत हैं और सैकड़ों इन्द्रों द्वारा आपके चरणोंकी वन्दना की जाती है। आप केवलज्ञानके कारण दिवाकरके समान हैं, संयमके सागर हैं तथा अविचल पदसे अभिनन्दनीय हैं। आपकी जय हो" ॥२२॥ २३ तीर्थकरको वामादेवीके पास छोड़कर इन्द्रका स्वर्गमें आगमन इसी समय इन्द्रने वज्र लेकर (भगवान्के ) दाहिने अंगूठेको चीर दिया। इस प्रकार जो अमृत उसमेंसे निकाला गया उससे जरा और मृत्यु कदापि नहीं होते। उस बालकको साष्टाङ्ग प्रणामकर स्वयं इन्द्रने उसका नाम पाव रखा। फिर ( इन्द्र) दोनों हाथोंसे बालकको लेकर उठा, उसके भवनकी तीन प्रदक्षिणा की और वाराणसी नगरमें प्रविष्ट हुआ । वहाँ सामने ही अनेक प्रकारके देवोंका समूह खड़ा था। मंगल वाद्योंकी ध्वनिके बीच वह धीरे-धीरे हयसेन राजाके घर पहुँचा । जिनवरको जिनवरकी माताको सौंपकर सुरेन्द्रने स्वयं नृत्य किया। फिर जिनेन्द्रकी रक्षाके लिए उत्तम देवोंको नियुक्त कर इन्द्र देवोंके समूहके साथ स्वर्गको वापिस गया। चिन्ता विमुक्त यक्षराज जिनवरको अनुराग पूर्वक प्रणामकर अपने घर गया । पहिले जो सोलह अप्सराएँ सेवा करने आई थीं वे भी जिन-जननीको प्रणाम कर चली गई। गोशीर्ष चन्दनसे चर्चित, अपरिमित यशसे धवलित, उत्कृष्ट आभूषणोंसे विभूषित तथा जयश्री द्वारा आदर प्राप्त पदममुख जिन-भगवान्को देखकर उत्तम पुरुषों और देवोंने नमस्कार किया ॥२३।। ॥आठवीं सन्धि समाप्त ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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