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________________ आठवीं सन्धि जिनेन्द्रके जो पुण्यसे पवित्र, महागुणोंसे युक्त तथा प्रशस्त पाँच महाकल्याणक हुए उनका मैं वर्णन करता हूँ । हे भव्यजनो, उन्हें सुनो । १ राजा हयसेनका वर्णन इस भरत क्षेत्र में धनधान्यसे समृद्ध काशी नामका प्रसिद्ध देश था। वहाँ अत्यन्त ऊँचे तथा सुनिर्मित भवनों से युक्त वाराणसी नामकी विशाल नगरी थी । वहाँ हयसेन नामका श्रेष्ठ राजा रहता था। वह सिंहके समान दूसरों द्वारा किये गये पराभवसे परे था । उसका प्रताप ग्रीष्मके सूर्यके समान दुस्सह था । गुरु, मित्र और बन्धुओंके लिए वह सज्जन स्वभावका था । उसका दर्शन चन्द्रके समान शीतल था । हँसीसे उसने अमृतको तिरस्कृत किया था। उसने रूपसे जगमें कामदेवको नीचा दिखाया था । वह अपने परिवारकी सहायता से इन्द्रके समान था । वह विशाल मेरुगिरिके समान स्थिर चित्त था । वह मतिमान समुद्रके समान गम्भीर था । वैभव के कारण कुबेर उसके लिए तृणके समान था । ( इस प्रकारके ) उस राजाके किस-किस गुणका वर्णन किया जाए ? शास्त्रार्थमें विचक्षण तथा लक्षणोंसे युक्त वह पृथ्वीपर देवलोक से अवतीर्ण हुआ था । पूर्वार्जित राज्य में स्थित तथा धन सम्पन्न होकर वह प्रजासे घिरा हुआ रहता था ॥ १ ॥ २ वामदेवका वर्णन उसकी चामादेवी नामकी रानी थी । वह लक्षणयुक्त, मनोहर, स्थिरचित्त तथा लज्जाशील थी । उसके स्तन बेलफलके समान तथा चाल हंसके समान थी। वह उज्ज्वल कुलमें उत्पन्न हुई थी । उसके वचन मिठासपूर्ण थे । वह व्याकरण के समान अर्थमें गम्भीर, शब्दार्थमें विचक्षण तथा गुणोंसे सम्पन्न थी । वह बुद्धिमती शुभकीर्ति से युक्त थी और विमलचित्त थी। वह और विनयसे विभूषित थी तथा गुणों की भण्डार थी एवं समस्त परिजनों के लिए कामधेनु थी । वह स्वप्न में भी अल्पाति-अल्प पापकी इच्छा नहीं करती थी । अथवा जिसके गर्भ में अन्धकारका नाश करनेवाला एवं जिसके चरणोंकी पूजा सुर, असुर, मनुष्य तथा नागेन्द्र करते हैं और जो तीन दिव्य ज्ञानोंसे युक्त है वह स्वर्गसे अवतीर्ण होकर आएगा उसके गुणसमूहका वर्णन कौन कर सकता है ? फिर भी मैंने लज्जाहीन होकर कुछका वर्णन किया है । परिजनोंके लिए सारभूत वह रानी वामादेवी राजाके साथ सुख भोगती थी । विविध विलास करती हुई तथा जिनेन्द्रका स्मरण करती हुई वह प्रेमपूर्वक समय व्यतीत करती थी ||२|| ३ इन्द्र तीर्थंकर के गर्भ में आनेकी सूचना इसी समय इन्द्रलोक में निवास करते हुए इन्द्रका आसन कम्पित हुआ । उसने सबका ज्ञान करा देनेवाले उत्कृष्ट अवधिज्ञानका उपयोग किया । उससे जिनवरका गर्भावतरण जानकर कुबेरको बुलाया और कहा - "हे यक्षोंके प्रधान ! कुबेर ! ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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