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________________ छठवीं सधि पूरे पृथ्वीतलका पालन कर ( तत्पश्चात् ) तपश्चर्या ग्रहण कर जिसने तीर्थंकर-प्रकृतिका बन्ध किया, उस कनकप्रभ चक्रेश्वरका चरित्र प्रयत्नपूर्वक सुनो। राजा वज्रबाहु और उसकी रानीका वर्णन जम्बू द्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्रमें सुदेव-रम्य विजय है। वहाँ नगरियोंमें सबसे अधिक सुन्दर और छह खण्डोंको अलंकृत करनेवाली प्रभङ्करी नामकी श्रेष्ठ नगरी थी। वहाँ वज्रबाहु नामका अत्यन्त चीर और दण्डधारी श्रेष्ठ राजा था। सब प्रजाजन उसकी आज्ञाकी प्रतीक्षामें रहते थे। उसका मन परस्त्री और परधनसे परे था। लावण्य कान्ति आदि गुणोंका वह आगार था । इस जगतमें उसके समान अन्य कोई न था। उसकी प्रभाकरी नामकी अभिमानिनी रानी थी। वह मनको लुभानेवाली थी। उसके कोमल कर करिणी ( के कर ) के समान थे । वह निरन्तर (राजामें) अनुरक्त थी और सुखशालिनी थी। उसे रात्रिमें सूर्य, वृषभ, चन्द्र, सिंह, मालाएँ समुद्र अग्नि और कमलयुक्त सरोवर ये आठ स्वप्नमें दिखाई दिए । प्रभातकाल आनेपर उसने अपने प्रियतमसे यह बताया । उसने भी हँसकर उनका फल इस प्रकार बताया-"तुम्हें एक पुत्र होगा जो पृथिवीका स्वामी और चौंसठ उत्तम लक्षणोंसे युक्त होगा।" "वह पुत्र छह खण्डवाली पृथ्वीमें मान पाएगा, नव निधियों और रत्नोंका स्वामी होगा तथा संसारमें सबसे सुन्दर और उत्तम मनुष्योंमें श्रेष्ठ होगा" ॥१॥ ___चक्रायुधका राजकुमार कनकप्रभके रूपमें जन्म; कनकप्रभको राज्यप्राप्ति इसी समय अनेक पुण्य कर्मोका कर्ता, मनुष्योंके हृदयों और नयनोंकी तृप्ति करनेवाला चक्रायुध देव समस्त दोषोंका नाशकर स्वर्गसे च्युत हुआ। वह देव मध्यम अवेयकसे च्युत होकर त्रिभुवनकी सम्पूर्ण लक्ष्मीको लेकर उस (प्रभाकरी ) के गर्भमें आया । उत्पन्न होनेपर उस यशके पुंज, चिरायु और कामदेवके समान सुन्दर शरीरवालेका नाम कनकप्रभ रखा गया। उसका वर्ण कान्तिउत्पादक कनककी प्रभाके समान था। वह सुकुमार था, स्वच्छ था, कामको जीतनेवाला था, अत्यन्त साहसी था, अनेक गुणोंसे युक्त था, मनुष्योंके लिए देवता था, नरकेसरी था, प्रजाका प्रिय था, सुडौल बाहुओंसे भूषित था, यश प्राप्तिका इच्छुक था, समस्त पृथ्वीका सम्राट् था, निधियों और रत्नोंका स्वामी था, नरोंमें श्रेष्ठ था, चक्रेश्व था, ऐश्वर्य सम्पन्न था, शत्रु (रूपी मृगों) के लिए सिंह था, यशसे शुभ्र था, धुरंधर था, विख्यात वीर था, रणक्षेत्रमें महान योद्धा था और संग्राममें वीर था । इन विशेषणोंसे वह मित्रों तथा वन्दिजनों द्वारा पृथ्वीभरमें अनेक प्रकारसे प्रशंसित था । उस महाबलीने समस्त राज्यका एकीकरण किया तथा पुरों और नगर-समूहोंसे अलंकृत पूरी पृथ्वीको अखंडित रूपसे अन्य जनों के साथ भोगने लगा ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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